प्रश्न – ईश्वर-दर्शन और आत्मदर्शन में क्या अंतर है ॽ
उत्तर – अंतर केवल समझ का है । भक्ति के द्वारा प्रेम का उद्भव होने से ईश्वर का साक्षात् दर्शन होता है उसे ईश्वर-दर्शन कहते हैं । ध्यानादि द्वारा शरीर में जो आत्मा का साक्षात्कार होता है उसे आत्मदर्शन कहा जाता है । वस्तु एक ही है परन्तु उसके प्रकारानुसार उसके नाम भिन्न भिन्न हैं ।
प्रश्न – ईश्वर-दर्शन कब होता है ॽ
उत्तर – इसके लिए कोई निश्चित समय या मुहूर्त नहीं है । जब भी आप योग्य बने तब ईश्वर-दर्शन हो सकता है । ईश्वर के लिए आपके दिलमें अत्यधिक प्रेम प्रकट होना चाहिए । ईश्वर के बिना आपको न चैन हो, न करार ऐसी अवस्था होनी चाहिए ।
ईसा मसीह के पास एक बार एक आदमी आया । उसने ईश्वर-दर्शन के बारे में पूछा । ईसा उसे एक सागर के किनारे ले गये और उसे पानी में डुबकी लगाने के लिए कहा ।
उस आदमीने डुबकी लगाई तब ईसाने उसकी गरदन पकड़ रखी ।
वह आदमी बहुत गभरा गया और उसने कहा – ‘अब छोड दीजिए अन्यथा मैं मर जाऊंगा ।’
ईसा मसीहने उसे छोड़ दिया और कहा – ‘पानी में आपको क्या अनुभव हुआ ॽ’
उस आदमीने कहा कि ‘अभी प्राण छूट जाएंगे ऐसा लगता था ।’
ईसाने उत्तर दिया, ‘ऐसी भावना या अवस्था जब ईश्वर के लिए होगी तब ईश्वर अवश्य मिलेगा ।’
ईश्वर-दर्शन के लिए पानी में डुबकी लगाकर दुःखी या परेशान होने की जरूरत नहीं है परंतु संसार की ममता व आसक्ति छोड़कर ईश्वर की भूख जगानी है । आजकल के मनुष्यों को तनिक भी महेनत नहीं करनी है । उन्हें संसार के भोगविलास में डूबे रहना है और साथ ही आसानी से, बिना परिश्रम किये ईश्वर मिल जाए तो प्राप्त करना है । अब आप ही सोचिए इस तरह ईश्वर-मिलन कैसे होगा ॽ ईश्वर के लिए तहे दिलसे रोना-तड़पना पड़ता है । रोम रोम और तन मन से उसे पुकारना पड़ता है । तब जाके ईश्वर-दर्शन की योग्यता प्राप्त हुई ऐसा माना जाए । ऐसा होने पर ईश्वर आपसे दूर नहीं रह सकता ।
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)