प्रश्न – ध्यान कैसे किया जाए ॽ
उत्तर – एक जगह शांतिपूर्वक अनुकूल आसन पर बैठकर मन में उत्पन्न होते हुए संकल्प विकल्प या विचारों को शांत करके और वृत्तियों को अन्तर्मुख करके बैठे रहना वह ध्यान का एक प्रकार है । ध्यान में बैठते समय भाँति भाँति के और विविध प्रकार के विचार उठते है तथा मन दोड़ धूप करता है । शायद इसीलिए मन को स्थिर करने के रामबाण साधन के रूप में किसी मंत्र या स्वरूप के साथ ध्यान करने की सलाह दी जाती है । इसे साकार ध्यान कहा जाता है । प्रारंभ में किसी अनुभवी पथप्रदर्शक के सलाह अनुसार वैसा साकार ध्यान करने से आगे के ध्यान में सहायता उपलब्ध होती है ।
प्रश्न – ईश्वर हमारी नजरों के सामने है और कृपा-वृष्टि कर रहे हैं ऐसा मानकर ध्यान करना चाहिए या वे हमारे हृदय के भीतर विद्यमान हैं ऐसा मानकर ध्यान करना चाहिए ॽ
उत्तर – ध्यान करने की अनेक पध्धतियाँ हैं, जिनका उल्लेख मैंने कई बार किया है किन्तु उन पध्धतियों का विभाजन मुख्यतया दो विभागों में कर सकते हैं १) सगुण ध्यान और २) निर्गुण ध्यान । ईश्वर के किसी मनपसंद रूप में मन को स्थिर करने का प्रयत्न किया जाय वह सगुण ध्यान है । किसी भी प्रकार का चिंतन या मनन किये बिना, गीता के छठे अध्याय में कहा गया है उस प्रकार ध्यान में बैठकर मन को धीर धीरे शांत करने की कोशीश की जाय वह निर्गुण ध्यान है । अथवा तो आत्मस्वरूप का चिंतन किया जाय या जप का आधार लेकर मन को एकाग्र या शांत बनाने की चेष्टा की जाय वह भी निर्गुण ध्यान ही है । इसमें से किसी एक का आश्रय ग्रहण कर ध्यान की साधना में आगे बढ़ सकते हैं । पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन या सुखासन में से कोई भी एक आसन ध्यान के लिए अनुकूल है । इसमें से अनुकूल आसन पसंद करके ध्यान करना चाहिए । आपकी भावना को लक्ष्य में लिया जाय तो यह अभिप्राय देना अनुचित न होगा कि ईश्वर हृदय में स्थित है और उनकी कृपा निरंतर बरस रही है ऐसा मानकर ध्यान करने से आपको विशेष लाभ होगा ।
प्रश्न – स्वयं को किस तरह पहचान सकते हैं ॽ आत्मा की पहचान का मतलब क्या है ॽ
उत्तर – आत्मा की पहचान का मानी है अपने शरीर में स्थित चैतन्य सत्ता की अनुभूति करना, उसका दर्शन करना । उसको स्वरूप का दर्शन भी कहते हैं । ध्यान करने से ऐसा संभवित होता है । ध्यान करते करते जब मन शांत हो जाता है तब आत्मतत्त्व का अनुभव होता है ।
प्रश्न – मोक्ष का स्वरूप कैसा है ॽ
उत्तर – मोक्ष का स्वरूप बड़ा विशाल है । स्वरूप दर्शन से आत्मा के अपरोक्ष ज्ञान का उदय होता है और इससे भेदभाव मिट जाते हैं, अशांति दूर हो जाती है । मोक्ष का मुख्य स्वरूप वही है । इसकी अनुभूति के लिए, सब प्रकार के व्यसनों, दुर्गुणों, दुर्विचारों एवं दुष्कर्मों से मुक्ति पानी चाहिए । लौकिक ममता, अहंता एवं आसक्ति से छुटकारा पाना चाहिए ।
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)