प्रश्न – प्रभु के दर्शन जब नहीं होते तो कभी कभी ऐसा होता है कि चलो आत्महत्या कर ले । ऐसा करने से ईश्वर का दर्शन होता है क्या ॽ
उत्तर – नहीं, यह विचार ग़लत है । प्रभु का दर्शन तो नित्य निरंतर सतत भजन करते रहने से ही मिलेगा । ऐसा निरंतर भजन करने से मनका मैल मिट जाएगा और हृदय विशुद्ध हो जाएगा । और तत्पश्चात् उसमें प्रभु का प्रेम प्रकट होगा । ऐसा प्रेम जगेगा तब ईश्वर दूर नहीं रहेगा । यह प्रेम जगा नहीं है तब तक सब चिंताएँ हैं और मनुष्य प्रभु से दूर है । संसार नाशवंत या विनाशशील है इसलिए उससे प्यार किस कामका ॽ एक ईश्वर ही अमर है । उससे प्रेम करने से ही सार्थकता है । उसे पाकर ही मनुष्य अमर बन सकता है । ऐसा समझकर संसार के विषयों की ममता और रागवृत्ति नष्ट कर देनी चाहिए । जहां तक इन्द्रियों के विषयों में और संसार के पदार्थों में दिलचस्पी है वहाँ तक ईश्वर-प्रेम या स्वयं प्रभु कैसे मिले ॽ एक पतिव्रता नारी की भाँति आप अपने मन को ईश्वर या संसार - दोनों में से किसी एक पर समर्पित कर सकते हैं । ऐसे परम प्रेम से ही प्रभु मिलता है । उस प्रेम को जगाने की कोशिश करें । उस परम प्रेम के बीच जो बुराई या दुष्ट वृत्तियाँ आती है उसको नष्ट करें । आत्महत्या करने से परमात्मा नहीं मिलेंगे और आपके खाते में आत्महत्या का दुष्कृत्य जुड़ जायेगा । उसकी सजा भुगतने के लिए आपको फिर जन्म लेना पड़ेगा । प्रभु भी ऐसे डरके मारे दर्शन दे दे ऐसा थोडा ही है ॽ फिर तो सारा विश्व उसे खुदकुशी की धमकी देकर डराने लग जाए । श्रध्धा रखिए और पुरुषार्थ कीजिए । आपके भजनरूपी सत्कर्म नाकाम या विफल नहीं होंगे । उसका पूरा हिसाब प्रभु चुका देंगे । हमें भजन शरीर द्वारा ही करना है अतएव हताश होकर शरीर को नष्ट कर देने का विचार न करें । जहाँ तक ईश्वरप्राप्ति नहीं होती वहाँ तक जन्म मरण का चक्र चलता रहेगा । इसी शरीर से प्रभु के लिए हो सके उतना साधन करें । निराश होने से कुछ हासिल नहीं होगा ।
प्रश्न – तो फिर बहुत कुछ भजन करते रहने पर भी प्रभु क्यों नहीं मिलते ॽ
उत्तर – जिस भजन को आप अपने मन से अधिक मानते हैं वह सचमुच ज्यादा है या नहीं इसका मोल कौन करेगा ॽ ईश्वर के दरबार में सबका हिसाब होता है । जब एक बुरे कर्म का भी हिसाब होता है और उसका फल अवश्य मिलता है तो आप तो भजन करते हैं । भजन भगवान को प्रिय है । ईश्वर को प्रिय ऐसा कार्य आप करते हैं तो उसका फल आपको प्राप्त न हो ऐसा हो ही नहीं सकता । इसलिए जल्दबाजी न करें । भगवान की न्यायप्रियता पर विश्वास रखकर भजन करते रहें ।
पूर्वजन्म में आपने कैसे कर्म किए हैं, क्या आपको मालूम है ॽ आपका भजन आपके पूर्व के बुरे कर्मों को धोने में खर्च होता न हो इसका क्या भरोसा ॽ जब आपके सभी बुरे कर्म धुल जाएंगे तब आपके भजन के पुण्य का पलड़ा नीचे झुकेगा । तब आपको पुण्य के फलस्वरूप ईश्वर-दर्शन होगा । आजका आपका भजन तो आपके पहले के बुरे कर्मों को धुलने में ही व्यतीत हो जाता है अतः हिम्मत मत हारें । साम्प्रत जीवन में कोई गलती न करें, दुष्कर्म न करें और प्रभु का स्मरण, भजन एवं ध्यान अधिकाधिक करें । जब उचित समय आएगा तब ईश्वर आपको अवश्य दर्शन देंगे । तब तक ऐसा मानें कि आप उनके दर्शन के योग्य नहीं हुए । अपने प्रयासों में लगे रहें और आगे बठते रहें ।
जब हम जमीन में बीज बोते हैं तो उसका फल क्या एक दिन में मिल जाता है ॽ उसका बहुत ही जतन करना पड़ता है और बेसब्री से इन्तज़ार करना पड़ता है । वैसा ही प्रभु-भजन के लिए है । इसलिए कहता हूँ कि प्रभु नहीं मिलते उसका कारण आपके भजन की कमी है ।
भजन भाव से संपन्न होना चाहिए । यह भाव विकृत एवं चंचल चित्त में पैदा नहीं हो सकता । अतएव भजन के साथसाथ भाव जगाने की ओर ध्यान दें । यह भाव जगेगा तब आपका बेड़ा पार हो जाएगा । प्रभु के दर्शन के लिए जब दिल तड़पेगा, उसके बिना आपको कुछ अच्छा नहीं लगेगा, तब आपका काम हो जाएगा । उस वक्त एक बार प्रेम से लिया हुआ प्रभु का नाम, उसके लिए एक ही भावपूर्ण पुकार आपका काम कर देगा । आप बहुत भजन करें, दिनरात जप की गिनती करके एक लाख या करोड़ पर पहुँच जायें, यह इतना मूल्यवान नहीं जितना की थोड़ा किन्तु सच्चे भाव से स्मरण करें । द्रौपदी और गज (हाथी) उसका उत्कृष्ट उदाहरण है । अतः भावपूर्ण भजन करने पर बखूबी ध्यान दें ।
भजन करते करते अगर निराशा उत्पन्न हुई तो आपका खेल ख़तम हो जाएगा ऐसा मानें । निरुत्साह या निराशा साधक के लिए कलंक है, दुश्मन है, उससे उसे दूर ही रहना है ।
एक जगह दो साधु भजन करते थे । वहाँ से नारदजी निकले ।
पहले साधुने नारदजी को देखा और उनका स्वागत किया ।
नारदजीने कहा, मैं विष्णुलोक से आता हूँ ।
विष्णुलोक का नाम सुनते ही साधु खुशी से झूम उठा ।
मुझे प्रभु के दर्शन कब होंगे, इस बारे में प्रभुने कुछ कहा है क्या ॽ
नारदजी ने कहा, ‘हाँ, फिलहाल तुम्हारी ही बात हो रही थी । प्रभुने कहा है कि जिस पैड़ के नीचे बैठकर तुम भजन करते हो उस वृक्ष के जितने पर्ण हैं, उतने साल बीत जाएंगे तब तुम्हें दर्शन होंगे ।’
यह सुनकर साधु अत्यंत हर्षित हो गया ।
वो बोला, ‘वाह ! मुझे प्रभु के दर्शन होंगे !’ और वह खुशी से झूमने लगा ।
वहाँ से नारदजी दूसरे साधु के पास गए । वहाँ भी वैसी ही बात हुई पर वह साधु तो बिलकुल निराश हो गया । पेड़ के पर्ण जितने साल होने पर मुझे प्रभु के दर्शन होंगे ॽ यह तो बहुत लम्बा अरसा हुआ ! वह होशोहवास खो बैठा और उसने भजन करना छोड़ दिया ।
पहला साधु अत्याधिक प्रेम से भजन करने लगा और उसे अल्प समय में ही प्रभु का दर्शन हुआ । इससे वह दंग रह गया । प्रभुने कहा, ‘नारदजीने तुम्हें जो कहा वह ठीक ही था । परंतु तत्पश्चात् तुमने अपना भजन बढ़ा दिया । पहले तुम जिस गति से भजन करते थे तदनुसार तो दर्शन की बहुत देर थी किन्तु भजन बढ़ने से मेरे दर्शन का योग जलदी आ गया और मैंने तुम्हें दर्शन दिया । दूसरा साधु निराश होकर बहुत कम भजन करता है, अतएव उसे बहुत देरी से दर्शन होगा ।’
इसीलिए कहता हूँ कि सोत्साह भजन करने की ओर ध्यान रखो तो प्रभुकी कृपा सत्वर होगी ।
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)