प्रश्न – कई दिनों से आपको पत्र लिखने की इच्छा थी जो ईश्वर ने आज पूर्ण की । मैं आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ना चाहती हूँ किंतु मेरा निजी जीवन मुझे उलझन में डाल देता है । मेरे जैसी स्त्रियों के लिए ध्यान संभवित ही नहीं है । बच्चे हैं, घरकी जिम्मेदारी तथा सारे दिन की थकान के बाद सुबह जल्दी कैसे उठ सकती हूँ ॽ छः बजे उठती हूँ तो छोटा बच्चा साथ ही उठ जाता है । सुबह में और रात को पांच मिनट ईश्वरस्मरण भी शायद ही होता है । रात को सेज में ईश्वरस्मरण शुरु करते ही नींद आ जाती है तो मैं क्या करुं ॽ
उत्तर – मैं सहानुभूति से आपकी बात को समझ सकता हूँ । दिनभर के परिश्रम के पश्चात् थकान के कारण नींद का आ जाना स्वाभाविक ही है । सेज में ईश्वर-स्मरण शायद ही हो । और विशेषतः ऐसी अवस्था में तो असंभवित सा है फिर भी आपको आगे बढ़ने की तमन्ना है इसीसे पता चलता है कि आपकी आत्मा में शुभ आध्यात्मिक संस्कार सुषुप्तावस्था में निहित है । उसे अरमान को पूरा करने के लिए अनुकूलता को ढूँढ डालिए । रात को नींद आ जाती है तो कोई हर्ज नहीं । दिन में किसी भी समय और घर के काम करते हुए ईश्वर-स्मरण करने की आदत डालिए । ऐसा करने पर तन से घर का काम होगा और मन से ईश्वर स्मरण । दोनो कार्य जारी रहने पर भी किसी कार्य का बोझ न लगेगा । दोनों एक दूसरे के बीच में न आएंगे । दूसरी बात यह है कि प्रातःकाल छः बजे उठने के बजाय एक या आधा घण्टा जल्दी उठकर आप ईश्वर-स्मरण कर सकती हैं । घर के दूसरे सदस्य उठे और घर की प्रवृत्तियों की शुरुआत हो इससे पहले थोड़ा आत्मिक साधना का शांत अभ्यास कर सकती है । प्रतिकूल परिस्थिति में रास्ता निकालना अपने हाथों में ही है अतएव वक्त निकाले ।
प्रश्न – एक और प्रश्न भी मुझे सताता है । हम औरतों को चार-पांच बच्चे होने के बाद संसार की इच्छा नहीं होती, किंतु पुरुषों को तो साठ बरस तक तृप्ति नहीं होती । नारियाँ पराधीन हैं । संसार में अशांति न हो इसके लिए अमुक चीजों का आधार लेने के लिए उनको बाध्य होना पड़ता है । अब ऐसी अबलाओं का उद्धार कैसे होगा ॽ अगले जन्म में पुरुष का अवतार प्राप्त करने की प्रार्थना ही उन्हें तो करनी पड़ेगी ।
उत्तर – आपका यह प्रश्न भी सर्वसामान्य है । कुछ पुरुष विषयी होते हैं तो कुछ स्त्रियाँ । परंतु यह सच है कि विषय की लोलुपता अत्यंत हानिकर एवं प्राणघातक है इसका इन्कार नहीं किया जा सकता । नर हो या नारी, उसे आखिरकार तो इससे छुटकारा पाना ही है । जो पुरुष साठ सालकी बड़ी उम्र तक शरीरसुख की लालसा रखता है और अपनी पत्नी के विकास को रोकता है उसे शर्म करनी चाहिए और, शर्म से मर जाना चाहिए । किंतु ऐसी परिस्थिति में आपको क्या करना चाहिए जानती हैं आप ॽ पुरुष की हीनवृत्ति के हवाले चुपचाप हो जाने के बजाय उसे आप समझाइए और समझाने पर भी अगर वह न माने तो उनकी इच्छा आपके और उनके लिए भी हितकारक नहीं ऐसा कहिए । इतना आत्मबल प्राप्त करें । साथ ही अपने आपको बेसहारा मानने की अपेक्षा ईश्वर का शरण लेकर उनको सच्चे दिल से प्रार्थना कीजिए । वे आपके पति के हृदय में नया आलोक फैलाकर उसका हृदय-परिवर्तन कर आपके जीवन-पथ को कंटकरहित बनाएँगे । मुश्किलों से हिम्मत न हारें । मुसीबतों को शिशुसमान सरलता से ईश्वर के पास उपस्थित करना सीखें । अमुक सिद्धांत या आदर्शों का यथाशक्ति पालन करें । यही सत्याग्रह है उससे आपकी बहुत सी मुसीबतें दूर हो जाएँगी । याद रखिए ईश्वर सदा आपके पास है और प्रत्येक परिस्थिति में आपको प्रकाश पहुँचाने के लिए तत्पर हैं इसीलिए निराश न बनें । जो परिस्थिति है उसमें से युक्ति-प्रयुक्ति से रास्ता निकालकर धीरे धीरे आगे बढ़े । आपकी भावना एवं वृत्ति अच्छी और सच्ची है इसलिए ईश्वर आपको अवश्य सहायता करेंगे ।
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)