प्रश्न – ध्यान की साधना में आगे बढ़े हैं ऐसा कब कहा जाता है ॽ
उत्तर – ध्यान करते वक्त मन बाह्य पदार्थों में दौडना या विहरना छोड़ दे, सबकुछ भूलकर केवल ध्येय-पदार्थ में ही तल्लीन हो जाये और ऐसी तन्मयावस्था एक दो क्षण नहीं, घण्टो तक अनवरत रूप से रहे तब कहा जायेगा कि आप ध्यान की साधना में आगे बढे हैं । ध्यान में बैठते ही आपको महसूस होगा कि आपका मन एकाग्रता के अमृतमय स्त्रोत में अनायास ही बहने लगेगा और आपको दूसरा कुछ याद नहीं आयेगा ।
प्रश्न – ध्यान कहाँ करना चाहिए ॽ
उत्तर – किसी भी मंत्र में, इष्टदेव में, शरीर के किसी भी केन्द्र में, जहाँ उचित लगे वहाँ ध्यान किया जा सकता है । जैसे कि गीता के छठे अध्याय में बताया गया है, किसी भी प्रकार के प्रतीक में ध्यान लगाये बिना, संकल्प विकल्प से रहित होकर, शांत अवस्था में बैठकर भी ध्यान किया जा सकता है । आप अपनी रुचि के अनुसार, पसंदगी और योग्यता के अनुसार ध्यान कहाँ करना चाहिए यह तय कर सकते हैं । अगर आप स्थल के बारे में पूछते हैं तो मेरे मतानुसार कोलाहलरहित, शांत एवं एकांत स्थान ध्यान की साधना के लिए अत्यंत उपयोगी है । अगर ऐसा स्थान न मिले तो घर में ही अपनी मनपसंद जगह पर अवकाश के समय में ध्यान कर सकते हैं ।
प्रश्न – शरीर के किस केन्द्र में ध्यान करना अधिक अनुकूल होता है ॽ
उत्तर – हृदय प्रदेश में अथवा दो भ्रमर के मध्य में ध्यान करना अधिक अनुकूल होता है । भक्तिमार्ग के साधक प्रायः हृदयप्रदेश को पसंद करते हैं । ज्ञानी एवं योगी प्रकृतिवाले साधक भ्रमर के बीच का प्रदेश चुनते हैं । आप इन दोनों में से किसी भी एक की पसंदगी कर सकते हैं । मैं समझता हूँ भ्रमर के मध्य का भाग आपको अधिक अनुकूल रहेगा ।
प्रश्न – सुना है कि ध्यान करने से उच्च कोटि के सिद्धपुरुषों का दर्शन होता है । क्या यह सच है ॽ
उत्तर – हाँ, बिलकुल सच है । ध्यान की साधना में अधिक गोता लगाकर आप इस बात का अनुभव कर सकते हैं । ऐसा अनुभव कोई भी कर सकता है । अल्प या अधिक साधना के बावजूद भी ऐसा न हो तो निराश मत होइए और ऐसा शीघ्र अभिप्राय मत दे दीजिए कि साधना में होनेवाले अंतरंग अनुभव मिथ्या है । महर्षि पतंजलि ने योगदर्शन के विभूतिपाद में कहा है कि दोनों भ्रमर के मध्यमार्ग में अर्थात् आज्ञाचक्र में चित्त को स्थिर करके जब ध्यान किया जाता है तब सिद्ध पुरुषों के दर्शन होते हैं । यह बात नितांत सत्य है परंतु उसके प्रत्यक्ष अनुभव के लिए दिल खोलकर साधना करने की जरूरत है और वह भी धीरज, श्रद्धा, हिम्मत व लगन से मन को निर्मल बनाते हुए ।
प्रश्न – क्या ये सिद्ध पुरुष सहायक होते हैं ॽ
उत्तर – अवश्य सहायक होते हैं । वे दिशा-निर्देशन करते हैं, मंत्र प्रदान करते हैं, प्रोत्साहन और सलाह सूचन देते हैं और इस प्रकार साधक के पथप्रदर्शक बनते हैं । इसके अतिरिक्त भी वे अमूल्य सहायता प्रदान करते हैं । इसके बारे में तो आपको तभी ज्ञान होगा जब आप स्वानुभव करेंगे और उसके संपर्क में आएँगे । वहाँ तक आप मेरी बात में विश्वास कीजिए और साधना में आगे बढ़ते रहिए ।
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)