प्रश्न – सिद्धिओं का सदुपयोग, सही उपयोग संभव है क्या ॽ
उत्तर – विश्व की प्रत्येक वस्तु का सही एवं गलत, उचित या अनुचित रूप में प्रयोग या उपयोग हो सकता है । इसका आधार व्यक्ति की बुद्धि, वृत्ति, दृष्टिकोण या भावना पर निर्भर रहता है । उदाहरण के लिये जो लकडी किसी के चलने का आधार बन सकती है, वही लकडी का प्रयोग किसीको मारने में भी हो सकता है । इतना ही नहीं वही लकडी रक्षा हेतु भी उपयोग में ले जा सकती है । सिद्धिओं का भी यही प्रचलन है । यदि किसी मनुष्य को कम या ज्यादा प्रमाण में सिद्धि प्राप्त होती है तो उससे आसक्त होकर अभिमानी न होते हुए उन्हीं सिद्धियों का उपयोग लोककल्याण हेतु किया जाये तो वही श्रेष्ठ होगा, उपयुक्त होगा । सिद्धियों की श्रेष्ठता, शोभा एवम् सार्थकता तभी मानी जायेगी जब कोई सिद्धि प्राप्त व्यक्ति अपनी सिद्धियों का उपयोग मानव कल्याण हेतु एवम् स्वयं के आत्मोर्कष हेतु करें ।
प्रश्न – परंतु सत्य तो यह है कि सिद्धिप्राप्त पुरुषों में अन्यों की सेवा करने की, परहित की भावना नहीं होती है । दूसरों की सेवा करने की वृत्ति को वो मोह, माया और अज्ञान मानते हैं, उसका क्या उत्तर होगा ॽ
उत्तर – यदि ऐसा है तो वह बहुत बड़ी बदनसीबी होगी । मनुष्य की इसी वृत्ति के कारण आज तक समाज का बहुत अहित हुआ है, नुकसान हुआ है । सिद्धिओं का उपयोग करके दूसरों की सहायता करने की प्रवृत्ति को माया, मोह या अज्ञान समझना ही मेरे ख़याल में अज्ञान की निशानी है । इस अज्ञान से हमें मुक्त होना होगा । क्योंकि अज्ञान में फँसी हुई प्रजा कभी उचित विकास नहीं कर सकती, दुःखी रहती है, तथा सुख शांति और समृद्धि की हकदार नहीं होती । अध्यात्म, धर्म, साधना और योग के नाम पर हम प्रजा को स्वार्थी या एकाकी होना नहीं सिखाते । ऐसा सिखाने का सोच भी नहीं सकते । हम तो उन्हें उदार, निःस्वार्थ और सेवापरायण बनाना चाहते है और ऐसा ही संदेश देते है । हमारे प्रातःस्मरणीय सत्पुरुषों ने भी हमें यही सिखाया है । इसलिए सिद्धिप्राप्त संतपुरुष या साधक उसमें कोई अपवाद नहीं है । जो बात जनसाधारण के लिए कही गइ है वही बात उनको लागु पड़ती है । इसमें अवकाश की कोई गुंजाइश नहीं है ।
प्रश्न – शांभवी मुद्रा की सहायता से सिद्धियाँ मिल सकती है क्या ॽ जैसे कि आसमान में उड़ने की, बड़ा या छोटा रूप धारण करने की, गायब हो जाने की, दूसरों के मन की बातें जान लेने की, भूत, भविष्य एवं वर्तमान के राज़ को खोलने की, अपने अभिष्ट पदार्थों की प्राप्ति करने की और ऐसी अनेक सिद्धियाँ ।
उत्तर – पहले ये बताओ कि ऐसी सिद्धियों की कामना क्यों करते हो ॽ
प्रश्न - लोगों को दंग करने के लिए या प्रभावित करने के लिए ।
उत्तर – आपकी यह कामना उचित नहीं है । किसी तरिके से आप सिद्धियाँ हासिल करेंगे तो भी आपको शांति नहीं मिलेगी । आपका उद्देश्य जरा भी प्रसंशनीय नहीं है । अगर आपको सही मायने में शांति चाहिए तो ईश्वर-दर्शन या आत्म-साक्षात्कार की महत्वपूर्ण सिद्धि प्राप्त करनी होगी । इसके लिए आत्मिक साधना का आश्रय लेना पडेगा । ये सिद्धियाँ आप या अन्य किसीकी शांति की प्यास नहीं बुझा सकेगी । उनके मोह में मूल मार्ग को भुल जाने का या लक्ष्य को गँवा देने का संभव ज्यादा है । इसलिए कहता हूँ कि मोह का त्याग करें । यह सहज रूप में प्राप्त हो जाए तो ठीक है, इनका सदुपयोग करें, इनकी लालसा मत रखिए ।
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)