‘सत्य की सदा जय होती है’ यह उपनिषद वचन आज भी इतना ही सच है परंतु इसके साथ यह भी उतना ही सच है कि सत्य की राह पर चलना हमेशा आसान नहीं होता । यह रास्ता अनेक भयस्थानों एवं मुसीबतों से भरा है, उस पर चलनेवाले की कसौटी होती है, उसे भिन्न भिन्न प्रलोभनों का सामना करना पडता है, नींदा एवं टीका सहन करनी पडती है ।
सत्य का पथ अत्यंत उपकारक एवं आशीर्वाद समान है पर संकट रूपी कंटको से भरा पडा है । यह मार्ग तलवार की धार जैसा है । दृढ मनोबलवाले वीर पुरुष उस पर धीरज, लगन व उत्साह से आगे बढकर अन्ततः सफल होते है । इस बारे में एक सत्य घटना मेरे मनश्चक्षु के सामने आती है । एक व्यक्ति की यह ऐसी जीवनकथा है जो हमारे हृदय में आदर उत्पन्न करती है । अतः इसको यहाँ पेश कर रहा हूँ ।
गुजरात के साबरकांठा जिले में मोडासा तालुके में बायल नामक एक छोटा-सा गाँव है । मोडासा या हिंमतनगर से मोटर-मार्ग से वहाँ जा सकते है ।
आजसे करीब चालिस साल पहले उस गाँव में एक विधवा रहती थी, जिसे सत्संग और सेवा में रुचि थी । गाँव में कोई साधु-महात्मा आते तो वह उनके दर्शन के लिए जाती, उपदेश सुनती और उसे भिक्षा भी देती, यथाशक्ति सेवा भी करती ।
उसके जीवन में सांसारिक सुख न था । पूर्वसंस्कार बडे प्रबल होने पर उसका मन संतसमागम में गहरे सुख की अनुभूति करता । संतपुरुष से ऐसा प्रेम किसी असाधारण आत्मा में ही होता है । इस दृष्टि से देखा जाय तो उस स्त्री की आत्मा असाधारण थी । उस समय उच्चे कोटि की साधनावाले संतपुरुष तीर्थयात्रा पर निकलते और बीच में आनेवाले गाँव में इच्छानुसार कम या अधिक समय रहते । इनमें कुछ संतपुरुष शक्तिसंपन्न भी होते थे ।
इत्तफाक से एक बार ऐसे ही परम प्रतापी संतपुरुष घूमते-धूमते इस गाँव में आ पहुँचे । गाँव के भाविक लोग उनके दर्शन से बडे प्रसन्न हुए । वह विधवा भी उसके पास पहूँच गई ।
उनके दर्शन व उपदेश से ऐसा लगा कि महापुरुष उच्च अवस्था प्राप्त है । ऐसे पुरुष का समागम जिस किसको और जब तब नहीं मिलता । अगर उनकी सेवा का लाभ मिले तो जीवन सफल हो जाये । वह स्त्री बडे मन से उनकी सेवा करने लगी । महात्मा पुरुष को भी उस गाँव का शांत वातावरण भा गया । इसलिए वे वहाँ लंबे समय रहे ।
‘जहाँ गाँव वहाँ सडाव’ इस न्याय से बायल गाँव में भी कुछ अशुभ-बुरे तत्व विद्यमान थे । उन्होंने उस विधवा की निंदा करना शुरु किया । महात्मा पुरुष एवं उस स्त्री का संबंध बुरा है ऐसा खुलमखुल्ला बोलने लगे ।
उस स्त्री को यह सुनकर बडा दुःख हुआ । वह जानती थी कि संतपुरुष कितने पवित्र थे और वह भी पवित्रता से उनकी सेवा करती थी । इसलिए लोगों की निंदा सुनकर उसे अत्यधिक दुःख हुआ लेकिन क्या करे ?
कुछ आदमियों ने उस स्त्री से कहा, ‘कितने भी बडे महापुरुष हो, संगदोष तो उन्हें लगता ही है । जेमिनी, पराशर और विश्वामित्र जैसे पुरुष भी स्त्री की मोहिनी से नहीं बचे तो आजकल के सामान्य संतो की क्या बिसात ? फिर भी अगर तुम्हें संगदोष न लगा हो, तुम पवित्र हो तो उबलते तेल की कडाही में हाथ डालो और पवित्रता की परख होने दो अन्यथा गाँव में फजीहत होगी ।
उस स्त्रीने लोगों को बहुत समझाया पर न माने तब वह पवित्रता की परख देने तैयार हो गई । वैसे तो वह अनपढ थी पर ईश्वर की कृपा एवं सत्य की विजय में उसे बडी श्रद्धा थी । एक निश्चित दिन गाँव वाले इकट्ठे हुए । उबलते तेल की कडाही के पास वह स्त्री आई ।
उसने परमात्मा से प्रार्थना की ‘हे प्रभु ! मेरा व संतपुरुष का सम्बन्ध कितना पवित्र है, यह आप ही जानते है । आप सर्वज्ञ है, अंतर्यामी है, आज मेरी रक्षा करना । तुम्हारे बिन मेरा कौन सहारा ?’
ऐसा बोलकर उसने उबलती तेल की कडाही में हाथ डाल दिया । गाँव के लोग यह दृश्य उत्सुकता, आश्चर्य एवं कुतूहल से देखते रहे ।
उबलते तेल का उस नारी पर कोई असर न हुआ । जाने किसी ठंडे पानी में हाथ डाले हो ऐसा लगा । सबकुछ जानने वाले परम कृपालु परमात्मा ने उसकी रक्षा की । उनके लिए कोई काम मुश्किल नहीं है । शरणागत भक्त के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं ।
जिसे शंका की नजरों से देखते थे, जिसकी निंदा करते थे, वह नारी विशुद्ध-पवित्र साबित हुई । लोगों के दिल में उसके प्रति सम्मान की भावना जागी । उन्होंने उसकी जयजयकार की । संकीर्ण मनोवृत्तिवाले, निंदा करनेवाले खामोश हो गये ।
गाँव के अग्रगण्य लोगों ने सबकी ओर से उस पवित्र नारी की क्षमा माँगी । उसके मना करने पर भी उस नारी को सो बीघा जमीन दी । थोडे समय के बाद वे संतपुरुष गाँव से चले गये और समयांतर में उस नारी ने भी देहत्याग किया । गाँव लोगों ने उसकी पवित्र स्मृति में छोटा-सा मंदिर बनाया । बायल गाँव में आज भी उस मंदिर का दर्शन हो सकता है । उस स्त्री को समर्पित जमीन का उपभोग उसके वंशज आज भी कर रहे हैं ।
यह जीवनकहानी किसी एकांतवासी विरक्त महापुरुष की नहीं परंतु समाज के बीच रहकर साँस लेनेवाले एक सामान्य नारी की है और इसीलिए वह अत्यधिक प्रेरक बन गई है । इसमें से यदि हम सत्य से जुडे रहने का तथा उसके लिए अंत तक आवश्यक बलिदान देने का पदार्थपाठ सीखें तो भी पर्याप्त है ।
- श्री योगेश्वरजी