कश्मीर सचमुच सौंदर्य की भूमि है इतना ही नहीं, वह शांति-भूमि भी है । प्राकृतिक सुषमा सभर उस भूमि में सुंदरता व शांति की कितनी अदभुत व अलौकिक असाधारण सामग्री भरी पडी है । उसके पर्वतों की शोभा तो देखते ही बनती है । देवदार, चीड, व चीनार की अगणित कतारों से सुशोभित पर्वतमाला पहली नजर में ही देखनेवालों को नयनाकर्षित करती हैं । उनका मनमयूर नाचने लगता है ।
उस मनोहारी पर्वतश्रेणियों का दर्शन करता हुआ यात्री आगे बढता है । ज्यों ही वह आगे बढता जाता है, उसके आगे नैसर्गिक सौंदर्य का अमूल्य भंडार खुलता जाता है । अन्ततः हिमकिरीट पर्वतों का दर्शन भी होता है, बर्फ पर चलना भी पडता है । इस तरह श्रीनगर से पहलगाँव, पहलगाँव से चंदनवाडी, शेषनाग, पंचतरणी और अमरनाथ तक आ पहूँचता है । वहाँ अभुतपूर्व दर्शन से आत्मविभोर हो जीवन की सार्थकता की अनुभूति करता है । यात्री का श्रम यहाँ सफल होता है । वहाँ है क्या ? पर्वत की छोटी-सी गुफा में स्वयंनिर्मित बर्फ का शिवलिंग नजर आता है । यह देख यात्री दंग रह जाते है । हजारों लोगोंने इस दर्शन का लाभ उठाया है और कई लोग प्रतिवर्ष हिमालय के उस पुराण-प्रसिद्ध तीर्थस्थान की यात्रा करते हैं ।
हमने भी उस अलौकिक स्थान की यात्रा की । अमरनाथ जब पाँच मील की दूरी पर था, हमने डेरा डाला । वहाँ एक घटना हुई जो हमेशा के लिए याद रह गई । उस घटना को याद कर आज भी अनुपम आनंद की अनुभूति होती है ।
शेषनाग के अतिशय शीत स्थान से आगे बढकर बर्फ से गुजरते हुए हम जब पंचतरणी पहुँचे तब दोपहर हो चुकी थी । ठंडी से पुरा शरीर और सब अवयव काँप उठे थे । स्नानादि करके हम शाक-पुरी ले आये पर संतोष न हुआ । मैं चाय नहीं पीता था और वहाँ दूध भी उपलब्ध न था । अतः मुझे लगा की आज भूखों मरना पडेगा ।
साथ आये सज्जन ने कहा, ‘ईश्वर की कृपा की सच्ची कसौटी ऐसे घोर पर्वतीय प्रदेश में ही होती है । आपकी दूध की आवश्यकता की पूर्ति यदि परमात्मा करें तो उनमें हमें श्रद्धा उत्पन्न हो ।’
मैंने कहा, ‘हमारी श्रद्धा उत्पन्न करने ईश्वर काम करेगा ? कब, क्या करना, यह सब उनके हाथ में है । अगर उसे ठीक लगेगा तो दूध भी हमें देगा । वह सर्वसमर्थ है । हमें किसकी जरूरत है, वह जानता है ।’
इस बातचीत के दौरान हमारे डेरे के करीब एक पहाडी आदमी आया । उसने उनी काली कामली ओढी थी । मस्तक पर उनी टोपी थी । मेरी ओर देखते हुए हँसकर पूछा, ‘आप दूध लेंगे क्या ?’
मुझे लगा क्या यह आदमी मजाक कर रहा है ? उसके पास दूध तो है नहीं और दूध की बात कर रहा है ?
उसने कहा, ‘आप मजाक मत समझिये । मेरे पास दूध है ।’
यह कहकर उसने अपनी कामली में से दूध का मटका निकाला । हम चकित हो गये ।
‘कहिए, कितना दूध चाहिए ?’ उसने पूछा ।
हमें सोच में डूबे देख उसने कहा, ‘सारा मटका ले लो । यहाँ पर दूध मिलना मुश्किल है, इसी लिये काम लगेगा ।’
हमने पूछा, ‘तुम्हारा स्थान कहाँ है ? कहाँ से आते हो ?’
उसने हँसकर कहा, ‘आपको इससे क्या मतलब ? मेरा गाँव यहाँ पर ही है, कुछ दूरी पर लेकिन उससे आपको क्या मिलेगा ? आप दूध ले लो ।’
आखिरकार हमने उससे दूध ले ही लिया । वह प्रसन्न होकर बोला, ‘कल भी इसी समय दूध लाऊँगा ।’ और देखते ही देखते वह न जाने कहाँ चला गया ।
दूध ताजा और सरस था । मुझे तृप्ति हुई । दूसरे दिन भी जब हम अमरनाथ के दर्शन कर पंचतरणी लौटे तब उस पहाडी आदमीने हमको दूध दिया ।
दस मील के प्रदेश में कोई पशुपंछी भी नहीं रह सकता ऐसी ठंडी में यह दूधवाला कहाँ से आता था, यह आश्चर्य था । दूसरा आश्चर्य यह था कि वह केवल हमारे डेरे पर ही आ पहूँचता और हमें ही दूध देकर बिदा हो जाता । दूसरे डेरे पर वह नजर ही नहीं डालता ।
परमकृपालु परमात्मा ही मानों हमारी मुसीबत देखकर दूधवाले बन गये थे । ईश्वर अपने भले या बुरे, छोटे या बडे भक्त की परवाह करता है । इस बात का विश्वास मुझे इस घटना से हुआ । ईश्वर क्या नहीं कर सकता, यही प्रश्न है । केवल उसमें हमारा प्रेम व विश्वास होना चाहिए ।
- श्री योगेश्वरजी