गीतापठन के उन दिनो में एक और घटना घटी जिसने शुद्धि के प्रयत्नो में बड़ी सहायता पहूँचायी । उन दिनों अचानक मेरे हाथ में श्री रामकृष्ण परमहंसदेव का जीवनचरित्र आया । धार्मिक व आध्यात्मिक साहित्य पढ़ने का मुझे शौक था, ये जानकर मेरे एक मित्र ने पुस्तकालय से यह पुस्तक लाकर मेरे हाथ में थमा दिया । मेरे लिए उनकी जीवनकथा पढ़ने का यह प्रथम अवसर था । हालाकि मैंने उनके सारवचनों को गीता के पृष्ठों पर पढ़ा था (मैंने उसका उल्लेख पूर्व कर दिया है), ईसलिए मुझे उनके प्रति आदर-सम्मान तो था ही । मैं उन्हें ईश्वरकृपाप्राप्त महापुरुष मानता था । उनका जीवनचरित्र मेरे हाथ में आने से मुझे बड़ा आनंद हुआ । ईश्वर के आशीर्वाद से या रामकृष्णदेव की कृपा से, जो भी मानो, मेरे जीवनविकास के निर्णायक दौर में सहायता पहूँचाने वो किताब मेरे पास आयी । ईश्वर की लीला बडी गहन होती है । वो किस वक्त और किस प्रकार सहायता करे वो कौन जान सकता हे भला ? शास्त्रो और संतो का ये मानना है कि पूर्वजन्म के संस्कारो पर वर्तमान जीवन का गठन होता है । अगर ये सच भी है तो उसे कैसे सिद्ध करें ? शायद कोई सिद्ध महापुरुष उसका भेद समझने में सफल हो ये अलग बात है मगर आम आदमी के लिए तो उसे समझ पाना हथेली पर चाँद लाने के बराबर है । पंडीतो के लिए भी जो मुश्किल था, चौद साल की उम्रमें भला मैं कैसे समझ पाता ? रामकृष्णदेव का जीवनचरित्र देखते ही मुझे अपार आनंद हुआ । दिल में अजीब सी चहलपहल हुई ।
जीवनचरित्र का पठन शुरु हुआ । जैसे जैसे मैं उसे पढता गया वैसे मैं उसमें खोने लगा, उनके जीवनप्रसंग मेरी नजरों के सामने तादृश्य होने लगे । उनकी जीवनी का पठन मेरे लिए ऐतिहासिक सिद्ध हुआ । संसार के कितने अनगिनत लोगों को उनकी जीवनी ने प्रेरणा दी होगी । आज तो परमहंसदेव की ख्याति हिंदूस्तान की सरहदों को पार करके अनगिनत देशो में जा पहूँची है और भारत के प्रसिद्ध महापुरुषो में उनकी गिनती होती है । रामकृष्णदेव के जीवनचरित्र के पठन से मुझे नयी रोशनी मिली । मैंने उनके साधनाप्रयोगो को पढ़ा । जगदंबा से उनके अखंड अनुसंधान के बारे में और गुरु तोतापुरी से उन्हें हुई निर्विकल्प समाधि के बारे में पढ़ा । माँ शारदा से शादी पश्चात उनका निर्मल व कामवासना से मुक्त व्यवहार पढ़ा । विवेकानंद का जीवन-परिवर्तन और कई भक्तों के जीवन में उनकी वजह से आये बदलाव के बारे में जाना । कामिनी, कांचन और कीर्ति के प्रति उनकी निर्मोहिता और वैराग्य के बारे में सोचता रहा । उनके उपदेशो का अनगिनत बार मनन किया । और अंत में जाकर पढ़ा उनका महाप्रस्थान । ये सब मेरे दिल में ऐसे जुड़ गया की बात ही मत पूछो । उनका जीवन धर्म का अनुवाद था और साधना का प्रत्यक्ष तरजूमा भी । उनके जीवन से साधना व ईश्वरदर्शन के लिए मुझे अनमोल प्रेरणा मीली । जीवन विकास के लिए आवश्यक हृदयशुद्धि से मैं कुछ हद तक वाकिफ़ था, ईस जीवनी के पठन से ईश्वरदर्शन के बारे में बहुत सारी जानकारी हासिल हुई । मेरी खुशी का ठिकाना न रहा । मुझे एसा भी लगा की मानो अपने बीते हुए कल के बारे में मैं पढ़ रहा था ।
जीवन में जो हासिल करना था, जिन आध्यात्मिक बूलंदीओँ को छूना था, उससे मैं अवगत हूआ । मेरे दिल में रामकृष्णदेव जैसे महान पुरुष बनने की महत्वकांक्षा ने जन्म लिया । मुझे लगा की मेरा जन्म इसी लिए है । ईश्वर ने मुझे इस लिए जग में भेजा है । मेरा हृदय भर आया । मेरे नैनो से अश्रु टपकने लगे । किताब का आखरी पृष्ठ आ पहुँचा । केवल एक वस्त्र पहनकर मैं छत के द्वार पर बैठा था । किताब में रामकृष्णदेव का फोटो था । मैंने भाववश उसको प्रणाम किया और दिल से प्रार्थना की : हे प्रभु, मुझे अपनी शरण में ले लो । मुझे अपने जैसा पवित्र, प्रभुपरायण व महान बनाओ । कामिनी, कांचन व काया के मोह से हमेंशा मुक्त रखो । जगदंबा की कृपा मुझ पर बरसे ऐसा आशीर्वाद दो । मुझे संसार की आसक्ति से दूर रखो और शुद्ध, बुद्ध व मुक्त बनाओ ।
आज भी वो दृश्य मेरी नजरों के सामने आता है और मेरे मन में कुछ अजीब संवेदन पैदा करता है । वो दिन मेरे जीवन का सबसे यादगार दिन था उसमें कोई दोराई नहीं । मेरे भावि जीवन की सुवर्ण पृष्ठभूमिका का वो पहला पृष्ठ था । भला उसे मैं कैसे भूल सकता हूँ ?