आज, जब मैं गंगा के तट पर बैठे हिमालय के पावन प्रदेश में साँस ले रहा हूँ तब, पुराने दिनों की स्मृति मन को टटोलती है । बीज में से अंकुरित होकर फूल और फल की सृष्टि होती है, बिल्कुल उसी तरह बचपन में बोए गये संस्कार-बीज आज अंकुरित होकर महक रहे है । मेरे मन के भाव पुष्ट हुए है, मेरी सोच परिपक्व और मेरे आदर्श अधिक अलौकिक हुए है । उमदा संस्कार के बीज बहुमूल्य होते है क्योंकि उनके बगैर फूल और फल से भरी जीवन की ईस बाड़ी की कल्पना करना असंभव है । जड़ के बिना पौधे का होना और किसी आधार के बिना मकान का ख़डे रहना क्या संभव है ? अगर दूध नहीं है तो दहीं कैसे बनेगा ? बाल्यावस्था का अनुभव किये बिना युवावस्था में पैर रख़ना नामुमकिन है । जिंदगी के ईमारत की नींव बचपन है, इसलिए उसकी उपेक्षा या अवगणना करना बड़ी मूर्खता होगी ।
बचपन के उन दिनों नींद में मैने एक स्वप्न देखा । जिस आश्रम में मैं रहता था वहाँ एक छोटा सा मंदिर था और उसकी बगल में एक मैदान । मैं वहाँ ख़डा था और एक कोने में मैंने एक साँप को देखा । मुझे भय लगा क्यूँकि साँप मेरी ओर आ रहा था । मैंने भागना शुरू किया लेकिन आश्चर्य तो ईस बात का था की साँप ने मेरा पीछा करना शुरू किया । मैं आगे और साँप पीछे । कुछ देर तक मैदान के चक्कर काटने के बाद मैं थक गया । मुझे लगा कि अब मैं ओर नहीं भाग पाउँगा इसलिए मैं रुक गया । मेरे आश्चर्य पर साँप भी रुक गया ओर मुझे संबोधित करके कहने लगा, ‘मुझसे ड़रने की कोई वजह नहीं है । मैं आपको किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहूचाउंगा ।’
ये बात अपने आप में बड़ी असाधारण और विचित्र थी । साँप क्या आदमी की तरह बोल सकता है, और वो भी शुद्ध गुजराती भाषा में ? मेरे आश्चर्य की सीमा न रही । भय को त्याग कर और कुछ रोमांचित होकर मैंने साँप की ओर देखा । सचमुच अपने सिर को हिलाकर वह बोल रहा था । थोडी देर में साँप अदृश्य हो गया और बिल्कुल उसी जगह पर एक मूर्ति खड़ी हो गई । मैं मूर्ति को पहचान नहीं पाया । कुछ ही क्षणो में मूर्ति में से आवाज आयी, ‘आप एक महान पुरुष बनोगे । आप का जन्म उसी के लिए है ।’ ईतना बताकर वह मूर्ति भी अदृश्य हो गई । मेरी नींद ईस असाधारण स्वप्न से समाप्त हो गई । पूर्णतया जागृति में आने के पश्चात मैं सोचने लगा, यह साँप कौन होगा और उसके मेरे पीछे भागने की क्या वजह होगी ? क्या वह कलियुग था या फिर माया का कोई स्वरूप ? कहीं खुद ईश्वर तो साँप के रूप में नहीं आये थे ?
सोचने पर भी प्रश्नो के ठोंस उत्तर मुझे नहीं मिले । हाँ, ईससे एक प्रकार की दृढता अवश्य मिली कि मैं सचमुच एक महान पुरुष बनूँगा । मैं यह नहीं जानता था कि किस रीत से मैं महापुरुष बन पाउँगा, मगर मुझमें एक आत्मविश्वास ने जन्म लिया की ईश्वर की योजना है तो एसा जरूर संभव होगा । ईश्वर ने मेरे भावि जीवन की संभावना को इस स्वप्न के रूप में व्यक्त किया है । भावि जीवन के प्रति मेरी उम्मीदें काफि बढ़ गई और मेरे जीवन में एक नयी आशा और उत्साह का संचार हुआ । मेरी महत्वकांक्षा के पंछी को मानो दो पंख मिल गये ।