जब मैं सृष्टि के कणकण में चैतन्य शक्ति को निहारने के प्रयासों में जुटा था, तब ईश्वर ने मेरी परीक्षा करने के लिए ब्राह्मिन लड़की से मुझे मिलवाया । क्या ये महज ईत्तफाक था या ईश्वर की निश्चित योजना ? जो भी हो, वो अदभुत संयोग था ! हृदय की पवित्रता और भावों की शुद्धि का यज्ञ अपनी चरमसीमा पर था उन दिनों हुआ ये मिलन मेरे लिए अनमोल साबित हुआ । उस लड़की से मेरा परिचय करीब चार-पाँच साल तक रहा । उसके फलस्वरूप मेरे जीवनशुद्धि के प्रय़ासों में मुझे काफि मदद मिली । मेरी उम्र उस वक्त छोटी थी मगर उम्र के हिसाब से मेरा दिल बड़ा भावुक व उर्मिप्रधान था । ये वो वक्त था जिसमें आनेवाली जिन्दगी की नींव डाली जा रही थी । मेरे भावि जीवन का ढाँचा उस पर काफि हद तक निर्भर था । ईश्वर की परम कृपा से वो वक्त अच्छी तरह से गुजर गया ।
जब मैं वो लड़की को पढाने के लिए उसके पास बैठता तब मन-ही-मन सोचता की माँ जगदंबा अपनी पूर्ण माधुरी से ईस रूप में व्यक्त हो रही है । ये सोचते-सोचते मेरे दिल में उसके प्रति पवित्रता व पूज्यभाव बना रहता और फिर बूरे ख्याल उठने का प्रश्न नहीं रहता । विपरित और परीक्षा की कठिन घडीयों में भी मेरा मन निर्मल बना रहा ये माँ की असीम कृपा का परिणाम था ।
दिन खत्म होने पर अपने बीते हुए दिन का परिक्षण और आत्मनिरीक्षण करना मेरा स्वभाव बन गया था । दिन में क्या क्या गलतियाँ हुई और उसे किस तरह से अगली बार रोका जाय उसके बारे में मैं सोचता रहता । संयोगवश, मेरा पढाने का वक्त शाम ढलने के बाद रहता था । ईस लिए स्वाभाविक रूप से पढ़ाना और आत्मनिरिक्षण करने का काम साथ-साथ चलता । उसके पास जाकर बैठने से मुझे अपने आपको अच्छी तरह से जाँचने का मौका मिलता और मेरा मन निर्मल व साफ रहता ।
मैं ये अच्छी तरह से जानता हूँ की मन की निर्मलता को बनाये रखना इतना आसान काम नहीं है । उसके लिए दृढ मनोबल आवश्यक है और इसका मुझे अच्छी तरह से अंदाजा है । फिर भी कठिन होने का ये मतलब तो नहीं की वो असंभव है । मैं ये नहीं मानता की मन को निर्मल रखना व कामवासना से मुक्ति पाना असंभव है । एसा सोचना अपने आप में मनुष्य की असीम आत्मशक्ति का अपमान होगा, ईश्वर की अनंत अनुकंपा की अवहेलना होगी । ज्यादातर लोग कामवासना के शिकार होने में जीवन का श्रेय समझते है । वो ये मानते है की कामवासना जीवन का एक अति आवश्यक अंग है और उन के बिना जीने का कोई मतलब नहीं है । अपने ईन अभिप्रायों से वो, जो उस पर काबू पाने के कठिन कार्य में जुटे है, उनको निरुत्साही कर देते है । ज्यादातर लोग कामवासना के शिकार होते है उसका ये मतलब कदापि नहीं की उस पर काबू पाना असंभव है । ईश्वर को प्रार्थना करने से एसा कौन सा काम है जो आसान नहीं होता ? ईश्वर की कृपा से आदमी बड़े-से-बड़ा और कठिनतम कार्य करने में समर्थ हो जाता है । कामवासना का बल भले ही प्रचंड हो, ईश्वर की अनंत कृपा के आगे उसका क्या मुकाबला ? जिनके मन में विश्वास की ये भावना पैदा हो जाती है, उसके लिए फिर कुछ भी नामुमकिन नहीं रहेता ।
आदमी को किसी कार्य की कठिनता से नाहिंमत और निराश होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि जरूरत है निर्बलता और कमजोर खयालों का त्याग करने की और कायरता को मार भगाने की । हृदय की शुद्धि के लिए उसे अशुद्धियों से झुझना है और ईश्वर की कृपा की कामना करना है । एसा करने से निर्मलता की साधना सरल होगी । ज्यादातर ये देखने में आता है कि अनुकूल परिस्थितियों में आदमी अपनी निर्मलता को बनाये रखता है, मगर विपरित संजोग व प्रतिकूल संग मिलने पर उसके संयम का बाँध तूट जाता है, उसकी पवित्रता का नाश होता है । ईसे मन की निर्बलता नहीं तो और क्या कहेंगे ? पवित्रता के उपासक को उससे उपर उठना है, उस पर विजय पाना है । वीर पुरुष वो ही कहलायेगा जो प्रतिकूल परिस्थितियों में अपना संतुलन बनाये रखता है । हाँ, उपर लीखी सभी बातें जितनी पुरुषों के लिए सत्य है, उतनी ही स्त्रीयों के लिए भी ।
अगर आम आदमी की तरह देखा जाय तो ईश्वर ने मेरे लिए प्रतिकूल संयोग का निर्माण किया था, मगर मेरे लिये वो अत्यंत लाभान्वित सिद्ध हुआ । मेरी पवित्रता की परीक्षा करने का और उसे पुख्त करने का सुनहरा मौका मुझे मिला । यौवन में प्रवेश कर रही एक स्वरूपवान युवती में माँ जगदंबा के दर्शन करने और उसके साथ स्नेहसंबध प्रस्थापित करने से मुझे साधनापथ पर अमूल्य मदद मिली । बहुत कम उम्र में ये सब मैं कर पाया ईसके पिछे माँ की करुणा काम कर रही थी ।
मेरे जीवनप्रवाह के बारे में सब अनभिज्ञ थे क्यूँकि मेरे भावो और विचारों का जीक्र मैने किसीसे नहीं किया था । ईश्वर की कृपा से मेरे ईर्दगिर्द अनुकुल माहौल था । माँ जगदंबा ने मेरे भावि जीवन को मध्येनजर रखते हुए बहेतरीन परिस्थिति का निर्माण किया था । मेरे आत्मिक विकास का जो पथ उसने मुकर्रर किया था उस प्रकाश के पथ पर मैं धीरे धीरे कदम रख रहा था । मुझे जन्म देनेवाली माँ मुझसे भले दुर रहती थी, मगर ये दिव्य माँ मेरी हर तरह से देखभाल कर रही थी । वरना ईतनी कम उम्र में आत्मिक विकास के पथ पर चलने का सोचना भी क्या मुमकिन था ? मेरे छोटे से तन में माँ ने निर्मल व पवित्र हृदय और आँखो में उन्नति के बड़े-बड़े सपने भर दिये । उसके पिछे शायद जन्मांतर के संस्कार कारणभूत थे । मेरा जीवन-पथ माँ की मरजी के मुताबिक अलौकिक रीत से बनता गया । मेरे साथ पढ रहे छात्रों में से नारायणभाई व शांतिभाई जैसे मित्रों को मेरे जीवन के बारे में थोडाकुछ पता था । मेरे उन दिनों के मनोभावों की साक्षी मेरी रोजनिशी थी जिसमें मैं अपने विचार और मनोव्यथा को नियमित रूप से अंकित करता था । ईनके अलावा मेरे उन दिनों की गवाह थी ईश्वर रूपी माँ, जो हर वक्त मेरा ख्याल रखती थी ।
पवित्रता और शुद्धि के मेरे प्रयासो में भगवान बुद्ध का जीवन-पठन काफि उपयोगी सिद्ध हुआ । भगवान बुद्ध अपने पूर्वजीवन में राजकुमार थे और उनकी यशोधरा नामक सुंदर पत्नी थी । जब उन्होंने संसार के दुःखो का दर्शन किया तो उनका हृदय पीघल गया । उन्हों ने सोचा की संसार में जीवमात्र को दुःख का सामना करना पडता है तो क्यूँ उसीसे छुटकारा न पाया जाय ? संसार के सब सुख क्षणजीवी है, चंचल है, नष्ट होनेवाले है तो उसे पाने के लिए वक्त कयूँ बरबाद करें ? जो कभी नष्ट नहि होता, जो शाश्वत और सनातन है, उसे पाने के लिए अपना सबकुछ क्यूँ न जुटाएँ ? काम, क्रोध और अहंकार को वश करके इन्द्रियों के स्वामी क्यूँ न बने ? कयूँ न मैं खुद शांति पाकर दुसरों को उसका मार्ग दिखाउँ ? काफि मंथन के बाद उन्होंने अपनी पत्नी और राज्य का त्याग किया और एकांत में जाकर तप करना प्रारंभ किया, और तपश्चर्या के पश्चात शांति का अनुभव किया । मैंने जब भगवान बुद्ध की जीवनकथा पढ़ी तो बार बार उनके त्याग के दृश्य मेरे मानसपट पर उजागर होने लगे । मैं सोचने लगा कि भगवान बुद्ध को संसार के सब सुख गौण लगे और उन्होंने अपने साम्राज्य का त्याग कर दिया तो फिर संसार के लाखो-करोडो लोग क्यूँ साधारण सुखों के पीछे भाग रहे है ? क्यूँ परमात्मा की प्राप्ति में अपना जीवन व्यतीत नहीं करते ? औरों का जो भी हो, मैं तो उनमें नहीं फसूँगा । मैं तो अपना जीवन परमात्मा की प्राप्ति में लगा दूँगा । भगवान बुद्ध के जीवन से प्रेरणा पाकर मैं बार-बार शरीर की नश्वरता और सांसारिक सुखो की क्षणभंगुरता के बारे में सोचने लगा । अंततः भगवान बुद्ध की तरह अपने जीवन को उन्नत और महान बनाने के लिए मैंने माँ जगदंबा से आर्त हृदय से प्रार्थना की ।