जब मैं कॉलेज के पहले साल में था तब मुझे महात्मा गांधीजी के दर्शन का मौका मिला । गांधीजी उस वक्त बिरला हाउस में ठहरे हुए थे । जी.टी.बोर्डिंग होस्टेल के दो-तीन छात्र उनके दर्शन के लिए जाते थे । एक दिन मैं भी उनके साथ चल पडा । जब हम बिरला हाउस पहूँचे तब शाम की प्रार्थना का वक्त था । बिरला हाउस की लॉन में गांधीजी शांति से बैठे हुए थे । उन्होंने सफेद वस्त्र धारण किये थे । उनकी आँखे बन्द थी और मुख तेजस्वी था । उनके दर्शन करके मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई, और क्यूँ न हो ? हमारे देश की आझादी के लिए वे झूझ रहे थे । देश के करोडों लोगों को स्वतंत्र और आर्थिक रीत से समृद्ध करने के लिए उन्होंने अपने निजी जीवन का बलिदान दिया था । देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में उनके कई प्रशसंक थे । प्राचीन ऋषियों की परंपरा को जीवित रखनेवाले, संयमी और शुद्ध जीवन के प्रणेता गांधीजी अर्वाचीन समय की महान विभूति थे । भारत की आझादी के लिए उनके द्वारा किये जानेवाले प्रयासों से मैं कुछ हद तक वाकिफ था, मगर उम्र के हिसाब से मेरी सोच मर्यादित थी ।
गांधीजी के दर्शन ने मेरे मन पर गहरी छाप छोडी । वैसे भी पिछले कई सालों से महापुरुष बनने की आकांक्षा का मुझमें उदय हुआ था और उसे सिद्ध करने के लिए मेरे प्रयास जारी थे । एसे हालात में मेरा गांधीजी के दर्शन करना निर्णायक और महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ । हालाकि गांधीजी के साथ बात करने का मुझे कोई मौका नहीं मिला मगर उनके दर्शन से लगा कि मुझे उन्नत जीवन के पथ पर चलकर देश व दुनिया की भलाई करनी चाहिए । सबसे पहले आत्मदर्शन का ध्येय सिद्ध करना चाहिए । बाद में लोकोत्तर शक्तियों से विभूषित होकर ओरों की मदद करनी चाहिए । भावनाशील होने के कारण मैं तरह तरह की कल्पनाएँ करने लगा । मैंने सोचा कि अगर मैं गांधीजी की किसी भी प्रकार सहायता कर सकूँ तो कितना अच्छा होगा ? ईश्वर अगर चाहे तो भारत की आझादी के शुभ कार्य में मैं निमित्त बनूँ । अगर सचमुच एसा हो तो कितना बढिया होगा ? ईश्वर की ईच्छा से कुछ भी संभव हो सकता है, इसलिए सबसे पहले इश्वर का साक्षात्कार करना चाहिए । साक्षात्कार होने पर व्यक्ति अनंत शक्ति को पा लेता है, जिससे वो लोगों की भलाई के काम में जुट सकता है । यह सोचकर मेरी साक्षात्कार की भावना को पुष्टि मिली ।
मुझे लगा कि मेरा जन्म देश और दुनिया का भला करने के लिए है । ईश्वर की कृपा पाकर मैं भगवान बुद्ध और ईशु की तरह दुनिया को शांति और उन्नति का मार्ग दिखाउँगा । मेरे सभी सपनें सही वक्त आने पर अवश्य सिद्ध होगें । एसे खयालों से मेरा मन और अंतर पुलकित हो उठा । कोई विशेष प्रयत्न बिना, मेरे मन में कल्पनाओं के एसे तरंग उठते रहे और कई दिनों तक मैं उनमें खोया रहा ।
देश और दुनिया की सेवा करने का सपना आज भी मौजूद है । मैं कभी कभी सोचता हूँ कि बचपन से लेकर आज तक मैं ओरों की सेवा औऱ सहायता से आगे बढा हूँ । मेरे जीवन की बागडौर ईश्वर ने अपने हाथ ली है और मेरी हर प्रकार से रक्षा की है । अतः मेरा ये फर्ज बनता है कि मैं अपना जीवन ईश्वर को समर्पित करूँ और उसकी ईच्छा से आम लोगों की भलाई के लिए अपना शेष जीवन व्यतीत करूँ । आज मेरा जीवन ईश्वर के चरणों में समर्पित है । लोगों की यथाशक्ति सेवा करने के कई सुनहरे मौके मुझे मिले है और मुझे फक्र है की मेरी हेसियत के मुताबिक मैंने लोगों की सहायता की है । मेरी यह कोशिश हमेशा रहेगी की मेरे शेष जीवन में, मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को सहायता पहूँचा सकूँ ।
देश की स्वतंत्रता के लिए हिमालय में रहकर मैंने माँ से सतत प्रार्थना की थी, जिसका जिक्र आनेवाले पृष्ठों में अवश्य होगा । यहाँ मैं सिर्फ इतना कहेना जरूरी समझता हूँ की देश की आझादी मुझे बहुत प्यारी थी और उसकी चिंता मुझे खाये जा रही थी । इसी वजह से, हिमालय के निर्जन और एकांत प्रदेशो में रहने के बावजूद, देश की स्वतंत्रता के लिए मैं ईश्वर को प्रार्थता रहा । भारत की आझादी के पीछे ईश्वर की निश्चित योजना कार्य कर रही थी । प्रार्थना के माध्यम से उस महाकार्य में मैंने अपना योगदान दिया । गांधीजी के लिए मेरे दिल में कितना आदरभाव था उसका हल्का सा पता मेरी मनोभावनाओं से चलता है ।
मेरे लिए गांधीजी का वो प्रथम और अंतिम दर्शन था । मेरे स्मृतिपट पर वो दर्शन आज भी वैसा ही है और हमेशा एसा बना रहेगा क्यूँकि उनके एक ही दर्शन में प्रेरणा के अनगिनत स्त्रोत छीपे है ।