ऋषिकेश से हरिद्वार होते हुए मैं कांगडी गुरुकुल की मुलाकात लेकर दिल्ली पहूँचा । दिल्ली के सुप्रसिद्ध स्थानो को देखने की ईच्छा से मैंने एक दिन वहाँ रुकने का फैसला किया । स्टेशन के नजदीक एक होटल में मैंने कमरा लिया । स्नानादि से निवृत्त होकर मैंने भोजन किया । ऋषिकेश की यात्रा को मन में टटोल रहा था कि इतने में होटल का आदमी कमरा खोलकर अंदर आया और मेरे साथ बात करने लगा । मेरी ईच्छा दिल्ली देखने की थी, यह जानकर उसे खुशी हुई । उसने तसल्ली दिलाई की वो सही किराया लेनेवाले टाँगे का बंदोबस्त करेगा जिससे मुझे शहर देखने में दिक्कत न हो । उसकी बात से मन हल्का हो गया, शहर कैसे देख पाउँगा यह चिंता अब नहीं रही ।
कुछ देर तक खामोशी छाई रही । फिर उसने कहा, ‘आपको यहाँ अच्छा लगता है ? कोई चिज की कमी तो नहीं है ? अगर किसी भी चिज की जरूरत हो तो बेझिझक बताईयेगा । हम मुसाफिरों की सुविधा का हर तरह से खयाल रखते है ।’
मैंने उत्तर में कहा, ‘मुझे किसी भी चीज की तकलीफ नहीं है ।’
उसने अपनी बात सविशेष रूप से पुनः प्रस्तुत की । वो कहने लगा, ‘मेरा कहने का मतलब ये है कि आप जवान है, अगर आपको चाहिए तो कोई अच्छी लडकी आपकी सेवा में पेश करुँ ? हम यहाँ सब सुविधा रखते है ।’
मुझे इस बात की कल्पना नहीं थी । भारत की राजधानी दिल्ली का माहौल इतना अश्लील और अनीति से भरा होगा उसका मुझे अंदाजा नहीं था । मेरी बगल के कमरे में से दो-तीन आदमी और एक औरत की आवाज आ रही थी । मानो किसी चिज के लिए उनमें बहस हो रही हो । कुछ ही क्षणों में औरत की दर्दभरी चीख सुनाई दी । मेरा दिल रो पडा । मुझे लगा कि कोई निर्दोष स्त्री पर अत्याचार हो रहा है । शायद उसकी व्यवस्था होटल की तरफ से की गई हो । यह होटल में एसी कितनी स्त्री रहेती होगी और अपने जिस्म का सौदा करती होगी ? उनके आक्रंद और आंसु इस होटल की चार दिवालों में सिमटकर रह जाते होंगे । ये तो सिर्फ एक होटल है, दिल्ली में एसे कितने होटल होंगे जहाँ पर अनीति का व्यापार होता होगा ? आदमी जिस्म बेचकर अपना गुजर-बसर करे यह खयाल ही कितना धृणास्पद है । यहाँ आनेवाली हरेक स्त्री अपनी मरजी से थोडी आती होगी । उसे किस तरह से, युक्ति-प्रयुक्ति करके फसाया जाता होगा । यह सब सोचकर मेरा दिल रो पडा ।
मेरे उत्तर की प्रतिक्षा कर रहे होटल के उस कर्मचारी को मैने बराबर डाँटा । मैंने बडी हिम्मत जुटाकर कहा, ‘आप मुझे कैसा आदमी समझ रहे है ? क्या आपको लगता है कि मै भी ओर लोगों की तरह बदमाश और कामुक हूँ ? एक अपरिचित मुसाफिर के साथ एसी बात करना क्या आपको शोभा देता है ? मुझे कोई लडकी की जरूरत नहीं है और आप अपनी होटल में एसी स्त्रीओ को मजबूरन रखते हो और मुसाफिरो के साथ व्यापार करने पर मजबूर करते हो उसकी खबर मुझे पुलिस को देनी पडेगी । तब आपकी समझ ठिकाने पर लगेगी ।’
मेरे उत्तर से वो सडक हो गया । उसे मेरे एसे उत्तर की अपेक्षा नहीं थी । उसने धीरे से कहा, ‘पुलिस को खबर देने की कोई जरूरत नहीं है । मैंने तो सिर्फ आपकी राय जाननी चाहि । अगर आपकी इच्छा नहीं है तो कोई बात नहीं । जाने दिजीए, क्यूँ परेशान होते हो ?’
मैंने कहा, ‘मेरी बिल्कुल ईच्छा नहीं है और अगर आप इसके बारे में एक लब्ज भी ज्यादा निकालेंगे तो बहुत पछतायेंगे ।’
दिल्ली की वो होटल में अनजान व्यक्ति को मैंने हिंमत करके एसा प्रत्युत्तर कैसे दिया वो मुझे मालूम नहीं, शायद ईश्वरने मुझे सुझाया । जो भी हो, मेरे उत्तर से प्रभावित होकर वो चल पडा । जातेजाते मुझे बताते गया कि शाम को ठीक पाँच बजे टाँगा आयेगा और मुझे दिल्ली की सैर कराके स्टेशन पर छोड देगा ।
उसके प्रस्ताव का मैंने स्वीकार किया । नियत समय पर टाँगा आ पहूँचा । करीब ढाई घंटे घूमाने के बाद उसने मुझे स्टेशन पर छोड दिया ।
मैंने होटल और दिल्ली से विदा ली मगर लंबे अरसे तक होटेल में हुई उस घटना ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा । उसके पश्चात कई सालों तक मैं भारत और भारत के बाहर कई शहरो में घूमता रहा । मैंने निरीक्षण किया की यह बदी सभी जगह फैली हुई है । भारत जैसे धर्मपरायण और गाँधीजी जैसे महान व्यक्ति के लिए गर्व लेनेवाले देश के लिए एसी होटलों की मौजूदगी, उसमें चलनेवाला देह-व्यापार और उसमें प्रजा या सरकार की निष्क्रियता शर्मनाक है । देश के कई हिस्सो में खुलेआम जिस्म बेचे जाते है और खरीदे जाते है । कई जगहों पर तो सरकार की तरफ से लायसन्स दिये जाते है । अनीति के इस व्यापार के लिए सरकार की ओर से प्रमाणपत्र मिले यह अपने आपमें कितनी शर्मदायक बात है । सरकार की मंजूरी बिना चल रहे सैंकडो वेश्याघरों की बात तो ओर है । सुना है कि चीन ने वेश्यागीरी पर काफि हद तक अंकुश पाया है । अगर वे एसा कर सकते है तो फिर हम क्यूँ नहीं कर सकते ? पूर्ण स्वराज्य, सर्वोदय तथा कल्याण राज्य की संस्थापना के लिए यह अति आवश्यक है ।