देवप्रयाग से थोडी दूरी पर स्थित निर्जन प्रदेश में हम रहते थे । वहाँ से उत्तुंग पर्वतों की चोटीयाँ दिखाई पडती थी । आंगन में बैठकर घंटो तक हम उसे देखा करते थे । चांदनी रात में गंगा और पहाडों का दृश्य देखते ही बनता था । तब पोष मास चल रहा था । सर्दीओं का मौसम था और ठंड बेहिसाब थी । मगर दशरथाचल पर रहने के बाद देवप्रयाग की ठंड इतनी ज्यादा नहीं लगी । चंपकभाई भी ठंड अत्याधिक न होने से प्रसन्न थे ।
हम कडी सर्दीयों के मौसम में दशरथाचल पर रहकर लौटे थे । अतः देवप्रयाग के जानपहचान वाले लोग हमें आदरभाव से देखने लगे । चंपकभाई के प्रति कुछ स्थानिक युवक आकर्षित हुए, चंपकभाई के बारे में जानने की उन्हें दिलचस्पी हुई । चंपकभाई कभीकभी उनसे अपने बारे में बात करते थे मगर ज्यादातर बात गुप्त रखते थे क्योंकि उनके नाम का वारंट था । चंपकभाई सावध रहकर जो बातें बताने लायक थी वो बताते थे । उनके विचार और अनुभव प्रेरणास्पद होने के कारण सबको सुनने में मझा आता था ।
चंपकभाई एकाद साल जपान में रहे थे और जपान के बारे में काफि कुछ जानते थे । बातों बातों में उनके मुँह से जपान की बात निकल गई । कुछ ही दिनों में उसका गंभीर परिणाम आया । वैसे भी कुछ लोगों के मन में यह बात थी की मैं हिमालय में तपस्या के लिये रहता हूँ और मेरा वेश साधु जैसा था, मगर मेरे साथ यह चंपकभाई क्यूँ रहते हैं । उनको लगा की निश्चित कोई भेद होना चाहिए वरना वे मेरे साथ यहाँ इतने सारे दिन क्यूँ रहें ?
उन दिनो देशी राज्यों में और देशभर में आजादी की जंग चलती थी । जंग से जुडे कई कार्यकर्ता अपनी पहेचान पुलीस से छुपाकर घुमते थे । लोगों को शायद लगा की चंपकभाई भी उन्हीं में से एक है ! जब चंपकभाई ने जपान की बातें सुनाई तो उनके शक को पुष्टि मिली । देवप्रयाग में उन दिनों शांतिनिकेतन में पढे हुए युवान रेशनींग इन्स्पेक्टर कार्यभार सम्हाल रहे थे । उनकी देवप्रयाग के थानेदार से अच्छी जानपहेचान थी । देवप्रयाग में राज्य के विरुद्ध लडी जानेवाली आजादी की जंग को दबाने में और जंग में संम्मिलित लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने में उन्हें सफलता मिली थी । इसी कारण से वह प्रसिद्ध हुए थे । उनको चंपकभाई पर शक हो गया । उन्हें चंपकभाई के बारे में अधिक तहकीकात करने की आवश्यकता लगी ।
एक दिन चंपकभाई रेशनींग कार्ड निकालने के लिये रेशनींग इन्स्पेक्टर के पास गये । इन्स्पेक्टर ने उनके साथ प्यार से बात की और राशन के लिये मोहर लगा दी । मगर उसी दिन शाम को हमारे घर पुलीस का आदमी आया और कहने लगा की रेशनींग इन्स्पेक्टर चंपकभाई को कल सुबह अपने घर पर मिलना चाहते है । पिछले दो दिन से पुलीस के आदमी किसी न कीसी बात को लेकर हमारे घर पर आये थे । इससे चंपकभाई को कुछ शक जरूर हुआ । अब इन्स्पेक्टर ने मिलने की सूचना भेजी । अगर वे मिलने न जाय तो इन्स्पेक्टर का शक यकीन में बदल सकता था । चंपकभाई ने फौरन इन्स्पेक्टर के आमंत्रण का स्वीकार किया ।
पुलीस का आदमी खुश होकर चला गया । चंपकभाई ने मुझे कहा, लगता है कि पुलीस को मुझपे शक हो गया है । मेरी जपान की बात से शायद यह सबकुछ हुआ है । थानेदार ने रेशनींग इन्स्पेक्टर के साथ मिलकर मुझे पकडने का नाटक किया है एसा मुझे लगता है । अब क्या होगा ? अगर मैं कल उनके प्रश्नों का ठीकठीक उत्तर नहीं दे पाया तो मैं तो काम से गया । मगर मुझे आप पर पूरी श्रद्धा है । अगर आप मेरे साथ आयेंगे तो मुझे हिंमत मिलेगी, बल मिलेगा और मैं प्रतिकुल परिस्थिति में अपने आपको सम्हाल पाउँगा ।'
मैंने लिखकर उन्हें हिम्मत बँधाते हुए कहा: 'अभी तो मेरा मौनव्रत चल रहा है । मैं भला आपको कैसे सहाय कर पाउँगा ? आप हिम्मत रखो, ईश्वर ने अब तक तुम्हारी रक्षा की है, वो कल भी तुम्हारी रक्षा करेगा ।'
'वो तो ठीक है', उन्हों ने कहा: 'मगर आप साथ नहीं चलेंगे तो मेरी मुश्किलें ओर बढ़ जायेगी । आपका मौन है वो मेरे लिये लाभप्रद रहेगा । सिर्फ आपके साथ चलने से ही मेरा काम बन जायेगा । कृपया आप मेरे साथ चलें ।'
सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर हम रेशनींग इन्स्पेक्टर को मिलने के लिये चल पडें । रातभर चंपकभाई ने संभवित प्रश्नों के उत्तर मन ही मन में सोच लिये थे । मैं उनके साथ गया इसलिये उनका उत्साह दुगूना था । रेशनींग इन्स्पेक्टर का मकान पुलीस स्टेशन के पास था । जैसे हम वहाँ गये, इन्स्पेक्टर ने हमारा स्वागत किया और बैठने के लिये कुर्सी दी । हमारे बैठने पर तुरन्त ही, हमारी धारणानुसार, थानेदार और पुलीस के कुछ आदमी कमरे में आकर बैठें । मानो उन्होंने सबकुछ पहले से ही सोच लिया था । कुछ क्षण शांति छायी रही, फिर इन्स्पेक्टर ने चंपकभाइ को जपान और उनके जीवन के बारे में पूछना शुरू किया । मेरे और उनके संबंध तथा हिमालय में आकर रहने का कारण पूछा । चंपकभाई ने बिना कीसी धडबडाहट से सभी प्रश्नों का सस्मित उत्तर दिया । हमारे संबंध के बारे में उन्होंने कहा, 'महात्माजी के साथ मेरा बचपन से परिचय है । मुझे उन पर प्रेम और श्रद्धा है इसलिये सांसारिक कार्यों से निवृत्त होकर कुछ दिन मन की शांति ढूँढने आया हूँ, और कुछ ही दिनों में बंबई वापिस चला जाउँगा ।'
उन दिनो चंपकभाई ने मनुभाई शाह ऐसा नाम रखा था । मैं भी उनको उसी नामसे पुकारता था । मेरा मौनव्रत था, इसलिये प्रश्नों के उत्तर का काम तो उन्हें ही करना था । उन्हों ने यह काम बडी हिम्मत और बहादुरी से किया । थानेदार और इन्स्पेक्टर का वहम काफि हद तक दूर हुआ । तकरीबन देढ घण्टे की पूछताछ के बाद हम वापिस लौटे । मगर अब चंपकभाई सावधान हो गये । उन्होंने कहा: 'मेरा यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है । ईश्वर की कृपा से आज मैं बच गया । आप साथ थे तो मेरी हिम्मत बनी रही, अगर आप न होते तो न जाने क्या होता । अब मुझे यहाँ से जाना होगा । मैं कल सुबह होते ही चल पडूँगा । आपके आने तक मैं दहेरादून जोशीजी के घर पर रहूँगा । पुलीस को एक दफा अगर किसी पर शक हो जाय तो वह बारबार उसे पूछताछ करके परेशान करती हैं ।'
मैंने उनकी बात में अपना सूर मिलाया । मेरे लिये दूध और अन्य इंतजाम करने के बाद दूसरे दिन सुबह वे मोटर में जाने के लिये निकले । मैं उनको बस तक छोडने गया । हैरानी की बात थी की बस में पुलीस का एक आदमी था मगर चंपकभाई डरनेवालों में से नहीं थे । उसी पुलीस अफसर के साथ बात करते हुए वे ऋषिकेश होकर दहेरादून पहूँचे और जोशीजी के घर पर रहने लगे । ईश्वर की परम कृपा से चंपकभाई एक कठिन अग्निपरीक्षा से सहीसलामत पार हुए ।