बडौदा
ता. १५ जुलाई, १९४०
प्रिय भाई,
खत में तुमने जो प्रश्न किया है, वो नया नहीं है । इसके बारे में हम पहले कई दफा बात कर चुके है । हाँ, ये प्रश्न मौजूदा हालात में जितना प्रासंगिक है, इतना शायद पहले कभी नहीं था ।
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तुमने जिसका जीक्र किया है उसको मैं जानता हूँ । उसकी उम्र शायद १२-१३ सालकी है ।
हमारे यहाँ मातापिता बच्चों की शादी को अपने जीवन की इतिकर्तव्यता मानते है । वे मानते है की पुत्र या पुत्री की शादी कर दी तो मानो जग जीत लिया । मुझे आजतक ये समज में नहीं आया की वे शादी की इतनी जल्दी क्यूँ करते है ? वो एसा क्यूँ नहीं सोचते की उनका लडका आम नहीं, खास बने ? वो एसा क्यूँ नहीं सोचते की उनका पुत्र कुछ साल तक और हो सके तो ताउम्र ब्रह्मचारी रहें, वो खुद का और औरों का भला करें, पूरी दुनिया में नाम कमाये । अगर वो सचमुच ये चाहते है तो फिर अपने पुत्र पर वक्त के पहले शादी का बोज क्यूँ डालना चाहते है ? हम सब इसका उत्तर जानते है । लोग कहते है कि माँबाप इसलिये एसा करते है क्योंकि वो अपने बच्चों से बहुत प्यार करते है । मैं पूछता हूँ की अपने स्वार्थ के लिये अपने बच्चों के गले में शादी का फँदा डालना कौन सा प्यार है ? क्या बच्चों से प्यार जताने की यही रीत है ? अगर वो एसा करना चाहते है तो अपने बच्चे की सही परवरिश करें, उसे जीवन में आगे बढने के लिये प्रेरित करें । मगर हमारे यहाँ एसा नहीं होता है । स्वार्थ और संकुचित दृष्टिकोण की वजह से माँबाप बच्चों की शादी जल्दी निपटा देते है ।
कुछ लोगों का मानना है की बच्चों की जल्दी शादी करने के पीछे माँबाप की यही तमन्ना होती है वो अपने पोते-पोतीओं को देखे, अपने वंश को आगे बढता हुए देखें । मैं पूछता हूँ की शादी करने से बच्चे होंगे इसकी क्या गेरंटी है ? और सिर्फ शादी करने से ही वंश रहता है ? और अगर एसा है तो एसे वंश का क्या फायदा ? काल के महासागर में उसका मूल्य कितना ? दयानंद और रामकृष्ण को कहाँ बच्चे थे ? तुलसीदास और सुरदास को कहाँ पुत्र थे ? मीराँ ने कौनसी लडकी को जन्म दिया था ? तो क्या आज उनको कोई याद नहीं करता ? हम पूरे आर्यावर्त में जो आर्यसमाज की शाखाएँ देख रहे है, उसमें धर्म का शिक्षण पाते हुए हजारों बालक-बालिकाएँ देख रहे है, ये क्या दयानंद के वंशज नहीं है ? ‘मीराँ के प्रभु गिरिधर नागर’ गानेवाली सभी कन्याएँ क्या मीराँबाई की वारिस नहीं है ?
हाँ, मैं मानता हूँ की आम आदमी के लिये वैवाहिक जीवन आवश्यक है । मगर जो आध्यात्मिक मार्ग पर चल पडे है, जिनको शादी की निरर्थकता बराबर समज में आ गयी है, उनके लिये एसा करना जरूरी नहीं है ।
वैवाहिक जीवन बाधाकारक है एसा कहना अर्धसत्य होगा । हाँ, इससे व्यक्ति पर एक प्रकार का अंकुश जरूर आता है । लेकिन ये सकारण है और ज्यादातर लाभदायी सिद्ध होता है । शादी के पहले एक व्यक्ति उपर उठ सकता था, तो शादी के बाद दो उपर उठ सकेंगे । अगर दोनों व्यक्ति शुद्ध है, जीवन की उन्नति के लिये प्रयत्नरत है, देहसुख की लालसा में नहीं फँसें है, तो दोनों उपर उठ सकते है । गांधीजी और कस्तूरबा, या किशोरलाल मशरूवाला और उनकी धर्मपत्नी के दृष्टांत हमारे सामने है ।
मगर तुम्हारी शादी तो एसी व्यक्ति के साथ होनेवाली है जिसको तुमने गोदी में खिलाया है । यह कैसा संयोग है ? और तुम्हें वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने की आवश्यकता भी नहीं है ।
तुमने हिंमत करके अपनी माँ को इसके बारे में बताने का सोचा है, ये ठीक है । तुम्हें साफ लब्जों में लिख देना चाहिये के अभी मुझे वैवाहिक जीवन में प्रवेश नहीं करना है । एसा करने से मेरी प्रगति में बाधा आ सकती है । एसा नहीं है की मुझे शादी नहीं करनी है, मगर अभी मैं इसके लिये तैयार नहीं हूँ । खास करके, इस बहन के साथ एसा सोचते हुए मुझे संकोच होता है ।
मैं तो कहता हूँ की अगर माताजी न मानें तो पिताजी को मनाईये । और वो भी न मानें तो इसका खुला विरोध करें । केवल मातापिता के बारे में सोचकर कब तक तुम अपने खुशियों की बलि देते रहोगे । हमारे माँबाप हमेशा ठीक सोचते है, एसा थोडा है ?
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अभी तो सिर्फ सगाई हुई है, शादी नहीं । मेरा मानना है की मातापिता की इच्छा के खातिर शादी करनी पडे तो करो, मगर कम-से-कम २२-२३ साल के हो जाने के बाद । तब तुम अपने पैरों पर खडे हो जाओगे । अगर इस प्रकार की आपसी समजबूझ है तो कोई हरकत नहीं है । मगर तुम्हारे मातापिता फौरन शादी कराना चाहे तो ना कह दो । तुम्हारे मातापिता तुम्हारा भला सोचते है तो ये बात समज पायेंगे और तुम पर जल्दी शादी करने का दबाव नहीं डालेंगे ।
मान लो के एसा नहीं होता है और तुम्हारी शादी हो जाती है, तो निराश होने की कोई बात नहीं है । उसे माँ की मरजी समजकर स्वीकार करना । शादी के बाद क्या करना है, ये तुम पर निर्भर है । जी. एम. भट्ट जैसे आदमी का इसमें काम नहीं है । उन्होंने कुछ वक्त ब्रह्मचर्य का पालन किया, ये बेशक प्रशंसापात्र है मगर इसके लिये हमें उसकी धर्मपत्नी को शाबाशी देनी होगी । न जाने क्यूँ उसे देखकर मुझे एक गुणियल बालिका की याद आती है । वर्तमान समय में हमे एसी स्त्रीयों की जरूरत है । जिस बहन के साथ तुम्हारा ब्याह होनेवाला है, वो अगर एसा कर सके, और तुम उसे एसा करने में सहायता करो तो इससे बढिया क्या हो सकता है ? अगर तुम विकृति से बचे रहो तो वो माँ की कृपा होगी ।
मेरा कहने का मतलब है की अब भी तुम्हारे पास विकल्प है । मैं इसके बारे में और भी लिख सकता हूँ मगर अब खत में इतनी जगह नहीं है । इसके बारे में फिर कभी बात करेंगे ।
तुम हमेशा शुद्ध और अच्छे विचार करो, परमचेतना के साथ अपना संपर्क बनाये रखो । फिर कितनी भी विषम परिस्थिति क्यूँ न आये, तुम्हारी प्रसन्नता बरकरार रहेगी । तुम्हारा हृदय अपना मार्ग खुद-बखुद ढूँढ लेगा ।
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तुमने प्राणायाम के बारे में पूछा, ये अच्छा हुआ । मैं जिस प्रकार से प्राणायाम करता हूँ उसके बारे में बताता हूँ । पहले दाहिन अंगूठे से दाहिने नासिकाद्वार को बन्द करके बाँये द्वार से श्वास अंदर लेना है (पूरक क्रिया)। एसा करते समय मन में भूः भूवः मंत्र एक बार रटना है । फिर दोनो नासिकाद्वार बन्द कर देना और यही मंत्र चार दफा रटना है (कुंभक) । फिर दाहिने नासिकाद्वार से श्वास छोडना है (रेचक)। एसा करते वक्त दो बार मंत्र रटना है । साँस अंदर लेने और बाहर नीकालने की क्रिया जीतनी हो सके उतनी धीमे-से करनी है । ये हुआ आधा प्राणायम । अब बाँये नासिकाद्वार को बन्द करके दाहिने द्वार से साँस लेना है और साँस रोकने के बाद दाहिने नासिकाद्वार को बन्द करके बाँयी और से निकालना है । मंत्र रटने का प्रमाण जैसे पहले बताया वैसा, मतलब पूरक, कुंभक और रेचक में क्रमशः एक, चार और दो रहेगा । एसा करने से एक प्राणायाम होता है । प्राणायाम पूर्ण होने पर कुछ वक्त, तकरीबन आधी मिनट तक, आँख बन्द या अर्धोन्मिलित रखनी है । फिर धीरे-से सोहम भाव करके आँख खोलनी है ।
शुरुशुरु में जैसा मैंने बताया एसा न हो पाये तो कोई हरकत नहीं । मगर कोशिश जारी रखना । मंत्र का प्रमाण १, ४ और २ ही रखना, मेरे कहने का मतलब तुम ८, ३२ और १६ मंत्र भी रट सकते हो ।
भोर, मध्याह्न, सांय और मध्यरात्रि का वक्त प्राणायाम के लिये सानुकूल है । प्राणायाम करने से ध्यान के लिये आवश्यक भूमिका तैयार होती है । मैंने आज सुबह ४ बजे उठकर २ प्राणायाम किये थे ।
इसके अलावा प्रातःकाल में जल्दी उठकर, मुँह धोकर, ताँबे के बरतन में रखा आधा लिटर पानी पीने से पेट साफ होता है । जलनेति करने से आँखो की ज्योति तेज होती है ।
तुम कितने बजे उठते हो ? रात को कब सोते हो ? शीर्षासन करते हो या नहीं ?
मैं अभी कमाटीबाग में हूँ । आकाश में बादल छाये हुए है । कल और परसों यहाँ जमकर बारिश हुई थी । कल शाम तो आकाश की शोभा देखने जैसी थी । मैं मनुभाई के साथ वन्य विस्तार, झाडीयों में गया था । वहाँ तालाब के किनारे बैठकर ये नजारा देखता रहा । आकाश में बादलों का खेल देखने में वक्त कब गुजर गया, ये पता ही नहीं चला ।
तुम्हें अपने जीवन में जो घटनाएँ होती है उसे माँ की इच्छा मानकर चलना होगा । मैं भी एसे कई अनुभवों से गुजर रहा हूँ । माँ की कृपा से मैं निराश और नाहिंमत नहीं हुआ हूँ । परीक्षा की इन कठिन घडीयों को हम हँसते-हँसते गुजार दे इसीमें हमारे जीवन की सार्थकता है । हमारे लिये निराश होंने का कोई कारण नहीं है । हम कौन है ? हम तो सृष्टि के विधायक है, अपनी तकदीर हम खुद लिखेंगे । हम अनंतानंद है, हमारे लिये निराश होने का कोई कारण नहीं है ।
रोजनीशी में अपने विचार लिखना मत भूलना ।