लोहाणा बोर्डींग, बडौदा
ता ३० अक्तूबर, १९४०
प्रिय आत्मन्,
हमेशा की तरह मेरा स्नेहवंदन । सिर्फ इसलिये नहीं की आज नूतन वर्ष है, लेकिन मैं तुमको नूतन भावना से प्रेरित होकर जीवनपथ पर चलते देखना चाहता हूँ । जो जोश और उमंग साल के पहले दिन होता है, एसा हरहंमेश बना रहे तभी नूतन वर्ष सार्थक होगा ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु !
आजकल पश्चिम के देशों के हालात अच्छे नहीं है । किसी गुब्बारें की तरह वहाँ संस्कृति और सुधार की हवा निकल रही है । मानव, पशु, यहाँ तक की धरतीमाता वेदना से व्यथित है । यह परमशक्ति की लीला है । आसुरी तत्वों का नाश दैवी शक्ति के उदय के लिये है । अगर हम इस बात में विश्वास रखते है, तो अब भारत का उदय समीप है । जगत में शांति का वातावरण हो इसके लिये हमें अपने आप को तैयार करना होगा । अगर हम दुनिया में अमन और शांति चाहते है, तो सबसे पहले हमें अपने आसपडोश, अपने संबंधीओं से प्यार करना होगा । जो विश्वशांति के प्रयासों में नाकाम होते है उनकी विफलता का प्रधान कारण यही होता है - वे खुद अमन और प्यार से दूर होते है ।
हम प्यार और शांति से भरें है । हम पवित्र है, मुक्त है, दिव्य है । हम जन्म और मृत्यु से पर है । हम कामिनी और कांचन की मोहिनी से मुक्त है । हम किसी सांसारिक बंधन में फँसनेवाले नहीं है । हम वीर्यवान है । हम पूर्वजन्म के ऋषिवर है । हम किसी महान और निश्चित लक्ष्य की पूर्ति के लिये धरा पर अवतीर्ण हुए है ।