प्रश्न - आज सामान्य रूप से मानव को संसार के विरोधी वातावरण के बीच रहना पडता है । संसार की प्रतिकूल परिस्थितियों में साँस लेनी पडती है । ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में मरज़ी या नामरज़ी से जीना पडता है । ऐसी कठोर वास्तविकता का सामना करते हुए आत्मोन्नति के मार्ग में कैसे आगे बढ़ सकते हैं ॽ मैं अगर अपनी बात करूँ तो मैं प्रारंभ से ही आध्यात्मिक विषयों के प्रति तीव्र अभिरुचि रखता हूँ । ऐसे विषयों में सक्रिय एवं सविशेष अभिरुचि लेके उत्तरोत्तर आत्मोन्नति करने की मेरी अभिप्सा है, किन्तु जिस वातावरण में मैं रहता हूँ, वैसे वातावरणमें मैं कुछ भी महत्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकता ।
उत्तर – संसार के अमुक वर्ग के साधकों की समस्या ऐसी ही है, जिसको आपने अपने व्यक्तव्य में प्रकाशित किया है । फिर भी मैं एक बात की ओर इशारा करना चाहूँगा कि आपको अपनी आध्यात्मिक अभिरुचि के लिये न्यूनाधिक प्रयास करना ही होगा । यह सच है कि ज्यादातर मनुष्यों को संसार के विपरीत वातावरण में रहना ही पड़ता है । यह भी इतना ही सच है कि ऐसे माहौलमें रहकर भी रास्ते निकाल सकते हैं और वैसा करना ही चाहिए । जीवन की आध्यात्मिक उन्नति के महान शिखरों को सर करनेवाले महापुरुषों के जीवन को देखोगे तो पता चलेगा कि उनका मार्ग भी पहले से साफ़ नहीं था । उनको भी ऐसे विरोधी वातावरणमें ही बसना पड़ा था, इसलिए उससे भयभीत या नाहिंमत न बनकर उसमें से ही रास्ता निकालकर आगे बढें । प्रहलाद, नरसिंह महेता, मीरांबाई, दयानंद या विवेकानंद के जीवन क्या दिखाते हैं ?’
इसलिये वातावरण के विचार से हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना उचित नहीं है । आपका उत्साह, आपकी हिम्मत और आपका आत्मबल प्रबल है । उस आत्मबल को पहचान ले और उसे विकसित करें तभी आपका काम आसान हो जाएगा ।
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प्रश्न – किन्तु उसको विकसित कैसे करें ॽ
उत्तर – यदि आपमें आध्यात्मिक विकास की सच्ची लगन या अभिप्सा होगी तो उसका विकास स्वतः होता रहेगा । मैं इतना ही सूचित करता हूँ कि माहौल को आप अधिक महत्व न दें । सभी प्रकार से अनुकूल वातावरण तो किसी भाग्यवान को ही मिलता है । इसलिये इसमें से रास्ता निकालने का विकल्प ही शेष रहता है । आप माहौल को सुधारने का प्रयास कर सकते हैं । इसके साथ ही साथ आत्मबल को विकसित करने के लिए महापुरुषों का समागम करते रहना चाहिए । इससे अद्भुत लाभ उपलब्ध होता है । ऐसे महापुरुषों का सत्संग या समागम सरल नहीं होता । आपको प्रकाश व प्रेरणा देनेवाले सद्ग्रंथो को पढ़ना चाहिए और उनका मनन करना चाहिए । तदुपरांत हररोज नियम से एक घण्टा या आधा घण्टा प्रार्थना, जप या ध्यान जैसी साधना में बिताना चाहिए । एक घण्टे या आधे घण्टे तक नियमित रूप से होनेवाली साधना लम्बे समय के बाद आपके भीतर शुभ संस्कारों का ऐसा दिव्य और प्रबल प्रवाह पैदा करेगी, जिसका सात्विक प्रभाव आप पर अवश्य पड़ेगा । ये सुसंस्कार ही आपको आगे बढ़ने में सहायक होंगे ।
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प्रश्न – संसार में रहकर आत्मिक उन्नति संभवित है क्या ॽ
उत्तर – अवश्य हो सकती है इसमें कोई सन्देह नहीं । जिसको उन्नति करनी है उसको कोई रोक नहीं सकता । सिर्फ उनको हमेशा सावधान या जागृत रहकर पुरुषार्थ करना चाहिए । आज तक कितने ही ऐसे साधक हैं जो पुरुषार्थ करके सिध्धि प्राप्त कर चुके हैं । आप भी यदि निश्चय करें तो क्यों नहीं कर सकते ॽ
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वर-दर्शन’)