प्रश्न - ईश्वर-साक्षात्कार के लिए मैं गृहत्याग करना चाहती हूँ तो इस विषय में आपकी क्या राय है ॽ
उत्तर – आप ईश्वर-साक्षात्कार करने के हेतु गृहत्याग करना चाहते हैं और इस विषय में मेरी राय चाहते हैं इससे पता चलता है कि आप अपने विचार या निर्णय के बारे में दृढ़ नहीं है । ईश्वर-साक्षात्कार की तीव्र प्यास अभी आपको नहीं लगी अन्यथा आप मेरे या किसीके अभिप्राय की अपेक्षा नहीं करते । जिसे ईश्वर-साक्षात्कार की सच्ची लगन लगी हो और जो उसके लिए आकुल-व्याकुल होता हो, वह गृहत्याग के लिए किसीकी सलाह नहीं लेता, वह तो कब गृहत्याग करता है उसकी किसीको खबर भी नहीं पड़ती । गृहत्याग करके जब वह बाहर निकल जाता है, तभी पता चलता है कि उसने घर छोड़ दिया । मेरे प्रति आपका अनुराग और विश्वास है इसी कारण आपने मेरा परामर्श माँगना उचित समझा है । अतः मुझे कहने दो कि आप गृहत्याग करें यह मैं नहीं चाहता । साम्प्रत परिस्थितियों में आप घर पर रहकर ही साधना करें और उसमें तरक्की करें यही बहेतर होगा । यही मेरी राय है ।
प्रश्न – आप मेरे गृहत्याग के लिए क्यों मना करते हैं ॽ
उत्तर – इसलिए कि आपको बाहर की दुनिया की परिस्थिति कैसी विकृत, विकट और नाजुक है इसका अन्दाज़ा और अनुभव नहीं है । आप एक महिला है इसलिए आपकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है तथा आपके प्रश्न को अलग रूप से सोचना पड़ेगा । साम्प्रत समाज में आप स्वैरविहार करके इच्छानुसार साधना कर सके ऐसी अनुकूल परिस्थिति ही नहीं है । महिलाओं के लिए ऐसे विश्वसनीय आश्रम भी नहीं है । आपका वैराग्य भी कच्चा है, भूमिका भी कच्ची है । साधना के पथ में आपकी प्रगति भी अत्यल्प है ।
प्रश्न – तो क्या मैं आगे बढ़ने का विचार छोड़ दूँ और मायूस होकर घरमें बैठी रहूँ ॽ
उत्तर – मायूस होकर घरमें बैठे रहने का कोई कारण नहीं है । आशा बनाए रखो । आशा के बिना जीवन निकम्मा और नीरस है । आगे बढ़ने के विचार का त्याग करने की जरूरत नहीं है । यह विचार भले ही रहे । गृहत्याग करने से ही आगे बढ सकते हैं ऐसे आग्रह को छोड दो । यह आग्रह अनुचित और निरर्थक है । घर से डरो मत, घर अनेक तरह से उपयोगी है । इसीमें तुम्हारी सलामती है । इसमें रहकर वर्तमान समय में तुम्हारे वैराग्यभाव को, तुम्हारी भक्ति को, हृदय-शुद्धि को और ज्ञान को दृढ़ करो । नियमित प्रार्थना और साधना की सहायता से ईश्वर के अधिक से अधिक निकट पहूँचने की कोशिश करो । संसार के मोह और उसकी ममता से दूर रहो । जीवन की आवश्यकताओं को कम कर दो । जीवन को संयमी एवं सादगीपूर्ण बनाओ । दूसरों को उपयोगी भी बनो । इसी तरह जीओगे तो घर आपके लिए सहायक सिद्ध होगा और तुम्हारे जीवन में त्याग की समस्या नहीं पैदा होगी । यदि किसी कारण से त्याग होगा तो भी उसे शोभित कर सकोगे और वह आपको सहायक होगा । घरको सुधारने से अथवा घरमें रहकर उन्नति करने से घर ही नंदनवन जैसा बढ़िया होगा और उसका त्याग करने की आवश्यकता शायद ही रहेगी । आवश्यक तैयारी विना किया गया त्याग साधक नहीं अपितु बाधक होता है यह सदैव याद रखो और व्यर्थ साहस मत करो ।
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)