हमारी यह सृष्टि कितनी विराट और कितनी विशाल है । विज्ञान इसका रहस्य ढूँढने में प्रयत्नशील है लेकिन वह प्रयत्न स्थूल है और उसके द्वारा बाह्य जगत की जानकारी उपलब्ध होती है, अंतरग सुक्ष्म दुनिया की नहीं । हमारे इसी भौतिक जगत में एक दूसरी सुक्ष्म दुनिया है जो समर्थ संतपुरुषों की है और जिसका अनुभव आध्यात्मिक अनुभूतिओं द्वारा ही हो सकता है ।
साधना-पथ पर चलते-चलते आंतरिक दुनिया के ऐसे विस्मयकारी अनोखे अनुभव होते हैं, जो हमें सोच में डाल देते हैं और सुक्ष्म जगत के अस्तित्व में मानने को मजबूर कर देते हैं । इस संबंध में मेरा अपना अनुभव कहूँ ? यह अनुभव प्रायः सात वर्ष पूर्व का है ।
मैं अपने वतन – सरोडा गाँव में कुछ दिन रहने गया था । वहाँ हररोज शाम को एक घंटा गीता का सत्संग होता और गाँव के कई नर-नारी उसका लाभ लेते ।
एक बार मध्यरात्रि के समय, मेरे नित्य के नियमानुसार मैं ध्यान में बैठा था, उस वक्त मेरा मन एकाएक शांत हो गया और मुझे समाधि का अनुभव हुआ । उस अवस्था में मैंने देखा तो घर के द्वार सहसा खुल गये और उसमें प्रकाश छा गया । उसमें से दो संतपुरुष अंदर आए ।
मैं सोचने लगा, ‘ये सतंपुरुष कौन है ?’
उनमें से एक की उम्र छोटी – करीब दस-बारह साल की थी । दूसरे वृद्ध पुरुष थे और प्रज्ञाचक्षु थे । स्वामीनारायण संप्रदाय के संत पहनते हैं वैसे लाल रंग की धोती, उपवस्त्र और मस्तक पर पगडियाँ थी । मेरे आगे आकर वे बैठ गये । मैंने सादर व सप्रेम प्रणाम किये ।
बडे संत ने कहा, ‘हम आकाशमार्ग से गढ़डा जा रहे हैं । इसी रास्ते में आपका गाँव आया । आप यहाँ रहते हैं यह हम जानते है, इसलिए आपसे मिलने हम आ पहुँचे । आप नित्य गीता-प्रवचन करते हैं यह बडी खुशी की बात हैं । इसको सुनने हमारे स्वामीनारायण संप्रदाय के लोग भी आते हैं, यह देख हमें आनंद होता है ।’
उन महापुरुषों से मिलकर, उनकी बातें सुन मैं फूला नहीं समाया । उनके साथ ज्यादा समय बात करने की इच्छा होते हुए भी इसका अवकाश न था । उन्होंने फौरन कहा, ‘अब हम जातें हैं । गढडा जाकर सुबह से पहले हमें लौटना है ।’ इतना कह दोनों संत खडे हो गये ।
द्वार पर फिर प्रकाश हुआ । प्रकाश में से वे बाहर निकले । मैं भी उनके पीछे बाहर आया पर वे देखते ही देखते गायब हो गये ।
जब मेरी आँखे खुली तब उस अनुभूति का असाधारण, अवर्णनीय आनंद मेरे अंतर में विद्यमान था । उन अदभूत संतपुरुषों की आकृति मेरी नयन-झरोखे पर अंकित थी ।
वे पुरुष कौन थे ? गीता के द्वितीय अध्याय के अनुसार जब दुनिया के लोग रात को सोते हैं तब वे जागते हैं, उन्हें नींद नहीं । न जाने किस विशिष्ट काम से, किसका कल्याण करने स्वामीनारायण संप्रदाय के तीर्थस्थान – गढडा की ओर जा रहे थे ।
कुछ भी हो, उनका दर्शन आहलादक था इसमें संदेह नहीं । इस अजीब अनुभव से मुझे पता चला की इस देश में ऐसे कई महापुरुष हैं जो सुक्ष्म रूप में, अज्ञात रहकर विचरण करते हैं और अपना जीवनकार्य करते रहते हैं । उनका दर्शन उन्हीं के अनुग्रह से किसी धन्य क्षण को होता है । जब होता है, तब आशीर्वाद समान सिद्ध होता है ।
उन अज्ञात संतपुरुषों को मेरे सप्रेम वंदन । उनकी स्मृति सदा प्रेरणा प्रदान करती रहती है।
- श्री योगेश्वरजी