रुखीबा की तरह हमारा घर भी गरीब था । मातापिता की आर्थिक स्थिति बिलकुल सामान्य थी । वे खास पढे-लिखे नहीं थे । वैसे भी गाँव में पढाई पे ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था । खास करके स्त्रीयों को पढाने की बात लोगों को कुछ अजीब लगती थी । इसी कारण गाँव में महिलाओं के लिए पाठशाला नहीं थी । अक्सर छोटे-छोटे बच्चों की शादी होती थी । ज्यादातर लोग अपने घर की बेटीयों की हो सके उतने जल्दी शादी कराने की फिराक में रहते थे । ऐसे माहोल में मातापिता के पास से शिक्षा की अपेक्षा रखना कुछ ज्यादा ही था । हमारे घर में खेतीबाडी ही जीवनयापन का मुख्य साधन था । पिताजी का नसीब कुछ ऐसा था की वो मेहनत तो बहुत करते मगर किसी न किसी कारण खेती में बाधा पैदा हो जाती । परिणामस्वरूप घर की आर्थिक स्थिति कभी भी अच्छी नही हुई । वैसे घर में खाने की समस्या नहीं थी । घर में घी-दूध उचित मात्रा में उपलब्ध रहते थे । मातापिता स्वभाव से संतोषी थे ।
पिताजी का स्वभाव अच्छा था । उनका शरीर भी तंदुरस्त था । गाँव में वक्त आने पर सुरक्षा के लिए वो सदैव आगे रहते थे । उन्होंने किसी का कुछ बिगाडा नहीं था । ऐसा सोचने की उन्हें फुरसत भी नहीं थी । दिन का ज्यादा वक्त वो खेतीबाडी में व्यतीत करते थे । अपनी छोटी-सी दुनिया में वे अपने आप को सुखी समजते थे । गाँव के लोग आज भी उनकी सराहना करते है ।
किसान को दुनिया का तात कहा जाता है वो सही मायने में उचित है । कृषि को हमारे यहाँ बरसों से उत्तम व्यवसाय माना गया है । उसमें प्रकृति के साथ आदमी का संयोग तो होता ही है पर साथ-साथ छल किये बिना कमाई हो सकती है । आजकल कृषि में कुछ विकृतियाँ जरूर आयी है मगर फिर भी ओर व्यवसायों की तुलना में वह प्रामाणिक रहा है । प्रमाणिकता से अपना जीवन चलानेवाले ऐसे किसान के घर में पैदा होने के लिए मैं गर्व महसुस करता हुं । गरीबों के खून चुसके अमीर हुए कोई धनवान व्यकित के घर में पैदा होने के बजाय मेहनत और इमानदारी से अपना जीवन-निर्वाह करनेवाले एक किसान के घर में पैदा होने में मैं ईश्वर की कृपा समझता हूँ । वैसे तो जन्म और मृत्यु ईश्वर के आधीन है फिर भी मेरा एक किसान के घर में पैदा होना ईश्वर की इच्छा थी ।
मेरे माताजी में बचपन से ही धार्मिक संस्कार थे । उनकी शादी कम उम्र में हुई थी । गाँव से थोडे दूर सिद्धेश्वरी माता के मंदिर में उस वक्त बोधानंद और सोमेश्वरानंद नामक दो साधुपुरष निवास करते थे । पानी भरने के लिये उन्हें वहीं होकर गुजरना पड़ता था, इसलिये उन साधुपुरषों के दर्शन का लाभ उन्हें सहज ही मिल जाता था । बोधानंद आयुर्वेद में कुशल थे । माताजी का घरसंसार सुखी नहीं था, ससुराल के लोग उन्हें परेशान करते रहते थे । इसी वजह से एक बार उन्होंने आत्मघात का प्रयास भी किया था । किस्मत से वह बाल-बाल बच गई । शायद यही कारण से वह बोधानंद के पास अक्सर जाया करती थी । बोधानंद ने एक बार उनको मंत्रित सोपारी दी थी मगर इससे उसे कोई फायदा नहीं हुआ । जब तक व्यवहारिक जीवन रहा, माताजी को मानसिक अशांति भुगतनी पडी ।
किसान के घर में जन्म लेने से मेरा जीवन भी किसान जैसा ही हो गया । जैसे कि किसान को कुदरत के सानिध्य में आनंद मिलता है वैसे ही मुझे प्रकृति की संनिधि में अपार शांति मिलती है । किसान का दुसरा गुण स्वावलंबन है, और मैं भी अपने जीवन में स्वावलंबी रहा हूँ यह मेरी जीवनकथा पढ़नेवाले पाठकों को भलीभाँति ज्ञात हो जायेगा । पुर्खों से चली आई खेतीबाडी और बेल जोतने का काम मैं नहीं कर रहा फिर भी मैं किसान तो हूँ ही । अब मैं जीवन की खेती करता हूँ । संयम और श्रद्धा के बैल जोतकर, ईश्वरीय प्रेम का बीज बोता हूँ । भक्ति की बारिश और ज्ञान के सूर्यकिरणों से उसमें सिद्धि ओर शांति की फसल उगाता हूँ । मेरा यह व्यवसाय अभी भी जारी है ।