जीवन को उदात्त बनाने के लिए मैंने अपना ध्यान केन्द्रित किया । मुझे लगा की महान बनने के लिये रूप, गुण, धन या संपत्ति आवश्यक नहीं है । हकिकत में लोग जिसे बड़ा आदमी समझते है, उनका जीवन कई अवगुणों से भरा होता है । कई बार ऐसा देखने में आता है कि सम्मान के अधिकारी व्यक्ति को लोग पहचान नहीं पाते । ईसका अर्थ यह निकलता है कि लोगो में पहचान बनाना महानता नहीं है । विद्वत्ता व ज्ञान भी महानता की द्योतक नहीं है । महान बनने के लिए आवश्यक है जीवन को सदगुणी व सदाचार से संपन्न बनाना, दैवी गुणों से भर देना, आचार और विचार की एकता करना, तथा मन और इन्द्रियों पर संयम करके परमात्मा की प्राप्ति के लिए आवश्यक प्रयास करना । एसे आदमी को ही सच्चे अर्थ में महान, पूजनीय और सम्मान के अधिकारी मानना चाहिए । अक्सर एसे आदमी को लोग ठीक तरह से पहेचानते भी नहीं और सम्मान भी नहीं देते । अगर एसा आदमी कीर्ति की कामना से मीलों दूर रहके अपना जीवन यापन करेगा तब भी उनकी गिनती महापुरुष में होगी । उनका साक्षर होना या निरक्षर होना मायने नहीं रखता, हाँ विवेकशक्ति से संपन्न होना अहम माना जायेगा । वो चाहे शारिरीक रीत से निरोगी व सुंदर हो या कुरुप हो लेकिन बाह्य रुपरंग से पर रहकर अपने आत्मबल पर भरोंसा करनेवाला अवश्य होगा ।
महान पुरुष का ऐसा रेखाचित्र मेरी मन की आंखो के सामने नाच रहा था और उनके नक्शेकदम पर चलने की आवश्यक तैयारी में मैं जुड़ गया । महापुरुषों के बारे में मेरी सोच मेरी उम्र के हिसाब से अवश्य छोटी थी मगर रामकृष्ण परमहंसदेव, भगवान बुद्ध, महर्षि दयानंद और विवेकानंद के जीवनचरित्रों तथा भगवद् गीता के पठन से मुझे काफि मदद मिली । मेरा काम कुछ हद तक आसान हो गया ।
जीवन की शुद्धि के प्रयासो में जब मैं जुटा था तब एक दिन मुझे स्वप्नदर्शन हुआ । दर्शन बड़ा ही सुंदर और रसिक था । नभ में शुभ्र बादलों के ढेर लगे थे और बीच में ईन्द्रधनुष पर माँ सरस्वती बिराजमान थी । श्वेत वस्त्रधारी माँ का गौर वदन अतिशय मोहक था, बाल खुले थे, हाथ में वीणा थी जिन पर उनकी कोमल करांगुलियाँ नर्तन कर रही थी । उनकी आँखो में अपार शांति छलक रही थी । उनकी बगल में खड़ी दो-दो स्त्रीयों में से कुछ हाथ में पंखा लिए हवा डाल रही थी तो कुछ प्रणाम कर माँ को निहार रही थी ।
स्वप्न का वो दर्शन कितना साफ था ? आज भी स्मृतिपट पर माँ की झलक तादृश्य होती है । ये कहेना आसान था की वो वीणापाणिधारिणी माँ सरस्वती ही थी । प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक में जैसे बताया गया है उसी तरह उसका स्वरूप कुंद, ईन्दु व तृषारहार समान धवल था । वो जो भी हो, मैं तो यह मानता हूँ कि जिस माँ के दर्शन की मैं अहर्निश कामना करता था उसीने कृपा करके स्वयं उस रुप में मुझे दर्शन दिया । मेरा ये मानना सही था या गलत ये मैं वाचको पर छोड़ता हूँ । शास्त्रों में साधकों की भिन्न भिन्न रुचि व प्रकृति के मुताबिक तीन स्वरूपों का वर्णन किया गया है – महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली । ये तीनों रूप बाहर से चाहें कितने भी अलग दिखें पर वो एक ही शक्ति के द्योतक है, आंतरिक रूप से उनमें कोई भिन्नता नहीं । तीनो स्वरूपों से माँ की महिमा ही अभिव्यक्त होती है । हमारे ऋषिमुनीयों ने अक्सर ये बात हमें बतायी है कि सारे संसार के मूल में एक सत्य स्वरूप परमात्मा हैं जौ विभिन्न स्वरूप लेकर प्रकट होते है । संसारमें जीतने भी जीव है, ईसी ईश्वर को प्रतिबिंबित करते है - एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति । ईसलिए जौ पुरुष है और जो स्त्री हैं, सब ईश्वर के ही स्वरूप है, ईश्वर ही ऊन सबके स्वरूप में तात्विक रूप से प्रकट हो रहा है । सिर्फ हमें अपनी भेददृष्टि से ऊपर उठके अभेदभाव में स्थिति करना है, अनेकता में एकता का दर्शन करना है । उन दिनों में ईश्वर की कृपा से मुझे ये अनुभव सहज रूप से होता था । मुझे हमेशा लगता था की संसार के जीतने भी जड़ या चेतन पदार्थ है, सब में ईश्वर की चिन्मयी शक्ति प्रतिबिंबित हो रही है । वो माँ ही थी जिसने अपनी कृपा की वर्षा करके मुझे सरस्वती की रूप में दर्शन दिया ।
माँ सरस्वती के स्वप्नदर्शन से मुझे बड़ा आनन्द मिला । माँ का स्वरूप कितना मनभावन था ! मैं सोचने लगा । संसार में शायद ही कोई उतना सुंदर होगा । खुबसुरत दिखनेवाली आम स्त्रीयोँ का माँ के रूप के आगे क्या मोल ? संसार के सुंदर दिखनेवाले सभी शरीर कभी-न-कभी व्याधि, वृद्धावस्था व मृत्यु के शरण हो जायेंगे, कोई भी शाश्वत नहीं रहेगा । मानवशरीर में मोहित करनेवाला यौवन और उसका सौंदर्य नभ में क्षणभर प्रकाशित होकर अदृश्य होनेवाली उन चपलाओं की तरह चंचल है, क्षणिक है । उन पर गर्व करना मिथ्या है । एक बार माँ के दर्शन पाने के बाद शायद ही कोई समझदार आदमी माँ के सनातन सौंदर्य को छोड़कर संसार के साधारण व्यक्तिओं में आसक्ति करेगा । और लोग जो भी करें, मैं ने ठान ली की मैं तो हरगिझ उनमें नहीं फसूँगा । मैं तो माँ के ऐसे अदभूत रूप का साक्षात्कार पाने के लिए एकजूट होकर कोशिश करुँगा । अगर स्वप्न के ईस दर्शन से मुझे ईतना अप्रतिम आनंद मिला, तो जब खुली आँख से उन्हें निहारनेका मौका मिलेगा तब मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहेगा ।
माँ सरस्वती के स्वप्नदर्शन से ईश्वरदर्शन की मेरी ईच्छा और प्रबल हो गई । मुझे लगा कि सचमुच, माँ की मुझ पर कृपादृष्टि है और आगे चलके एक दिन मुझे उनके दर्शन अवश्य होंगे ।