प्रश्न – नादानुसंधान का क्या अर्थ है ॽ
उत्तर – नाद का अनुसंधान करना अथवा नाद के साथ संबंध जोड़ना ।
प्रश्न – वह अनुसंधान कृत्रिम होता है या सहज होता है ॽ
उत्तर – दोनों प्रकार का हो सकता है । साधना की आरंभिक स्थिति में साधक को स्वयं नाद को अंदर से, कृत्रिम रूप से उत्पन्न करके चित्त की वृत्ति के साथ जोड़ना पड़ता है, उसे स्थिर करना पड़ता है । परंतु साधना में प्रगति करने के बाद कोई भी बाह्य क्रिया की सहायता के बिना अंदर से ही नाद का श्रवण अपने आप होता रहे वही स्थिति श्रेष्ठ होती है ।
प्रश्न – नाद को जगाने के लिए क्या कोई बाह्य क्रिया होती है ॽ
उत्तर – उस क्रिया को षण्मुखी मुद्रा कहा जाता है । उस मुद्रा में दोनों हाथ की उँगलियों की सहायता से दोनों नाक कान के छिद्रों को एवम् मुख को बन्द कर दिया जाता है । ऐसा करने से साधक को अंदर से, अपनी आत्मा से, नाद सुनाई देता है ।
प्रश्न – पर वैसा करने पर यदि साँस लेने में घूटन महेसुस हो तो ॽ
उत्तर – ऐसा होने पर नाक नहीं बन्द करना चाहिए । नाक को बन्द किए बिना भी कान से नाद का श्रवण कर सकते हैं । बीच-बीच में हाथ दुःखने पर, थक जाने पर थोडा विश्राम कर लेना चाहिए और पुनः नादश्रवण का अभ्यास आरंभ करना चाहिए । ऐसा अभ्यास प्रतिदिन सुबह और शाम दस या पंद्रह मिनट तक कर सकते हैं । रात्रि में या प्रातःकाल में यह क्रिया करना अधिक अनुकूल और लाभकारक होगा ।
प्रश्न – उस क्रिया से क्या लाभ होगा ॽ
उत्तर – जिस प्रकार सूरमय संगीत का श्रवण करने से मन मुग्ध होकर आनंद का अहेसास पाते-पाते अपने आप एकाग्र हो जाता है वैसे ही अंदर से उत्पन्न नाद में मग्न मन बाह्य तर्कवितर्क या विषय विकारों को छोड़कर नाद समाधि में निमग्न हो जाता है । मन की चंचलता शांत हो जाती है । उससे अधिक क्या लाभ चाहिए ॽ धीरेधीरे अभ्यास में रत मन अंततः देहातीत दशा का अनुभव करने लगता है, इतना ही नहीं आत्मानुभव का आनंद भी लेता है । षण्मुखी मुद्रा साधक की सहचरी बनकर बहुत ही उपयोगी साबित होती है ।
प्रश्न – स्वतः अंदर से उत्पन्न नाद की अनुभूति कैसी होती है ॽ
उत्तर – वह नाद कान को बन्द किए बिना अंदर से अपने आप प्रकट होता है । आरंभ में वह नाद एक कान से सुनाई देता है फिर दुसरे कान से सुनाई देता है । कभी कभी वह नाद दोनों कानों से सुनाई देता है और जोर से सुनाई देता है । समय के साथ वह मन्द पड़ जाता है या फिर रात दिन अहर्निश आत्मा की आवाज़ के रुप में नाद सुनाई देता है । यही नहीं, जीवन के अंतकाल, अंतिम साँस तक मुख्य रूप से दाहिने कर्ण से सुनाई देता है ।
प्रश्न – नाद के कितने प्रकार है ॽ
उत्तर – सामान्यतया नाद के दस प्रकार है । इनमें तमरे (एक कीटक) का नाद, घंट नाद, बादलों की गर्जना का नाद, वेणु नाद, जैसे विविध नाद समाविष्ट है । आगे चलकर प्रणवमंत्र या ॐ कार के जैसा नाद भी सुनाई देता है । नादानुसंधान की साधना मन को शांत करने में सहायभूत होती है और वैज्ञानिक भी है ।
प्रश्न – नाद का लाभ क्या आम आदमी उठा सकता है ॽ
उत्तर – नाद का लाभ कोई भी उठा सकता है जिनको उसमें रस और रुचि हो । इतना ही नहीं, जिन्हें आत्मोत्कर्ष करने की लगन लगी हो वह नादानुसंधान का आश्रय ले सकता है । इससे उसे कोई हानि या नुकसान होने की संभावना नहीं है । नाद संसारी और साधु सभी के लिए समान रूप से लाभदायी है ।
- © श्री योगेश्वर (‘ईश्वरदर्शन’)