अनुभवी संतो का ऐसा मानना है की साधना करने से तन और मन के परमाणु बदल जाते है । मैंने एसी कोई कठोर साधना नहीं की है, फिर-भी मुझे एसा अनुभव हो रहा है की मेरे तन और मन मानों बिल्कुल बदल गये है, मेरा रुपांतरण हो गया है । मुझे लगता नहीं की मेरा कहीं जन्म हुआ है । मैं माता और मातृभूमि से जुडी कोई विशेष संवेदना का अनुभव नहीं कर रहा हूँ । ये कोई मनगढ़त कहानी नहीं है बल्कि हकीकत है । मेरी दशा की कल्पना करना आम आदमी के लिए मुश्किल है, शायद अनुभवी पुरुष इसे कुछ हद तक समझ पायेंगे ।
मेरे कहने का ये मतलब कतई नहीं है कि अन्य लोगों की तरह मेरा जन्म नहीं हुआ है । ऐसा कहेना वास्तविकता से विपरित होगा । मेरा शरीर भी अन्य लोगों की तरह मानवशरीर का आधार लेकर पैदा हुआ है । मगर जन्म के वक्त और अभी जो मेरा शरीर है – इन दोनो में मुझे आसमान-जमीन का फर्क लगता है । मेरे शरीर के अणु-परमाणु साधना से बदल गये है । मुझे लगता है की पुराने शरीर की जगह मैंने नया शरीर और नया मन पाया है । मेरा पुनरावतार हुआ है । एसा अनुभव मैं लंबे अरसे-से कर रहा हूँ । शायद इसी बजह से अपनी माता, बहन, जन्मस्थान तथा अन्य सगेसंबंधीओं से जो लगाव मुझे होना चाहिए वो लगाव मुझे नहीं है । ये अनुभव की बात है इसलिये सिर्फ मुझ तक सिमीत रहे इसीमें उसकी भलाई है । आज मेरे जन्म के बारे में सोचता हूँ तो मुझे लगता है की मैं कोई सपने को याद कर रहा हूँ ।
मेरा जन्म अहमदाबाद और धोलका के बीच सरोडा नामक गाँव के एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था । मेरे पिता का नाम मणिलाल भट्ट और माता का नाम जडावबेन था । सरोडा में सभी जातियों के लोग रहेते है, हालांकि ब्राह्मण परिवार विशेष है । लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है ओर गाँव से पास होकर साबरमती नदी बहती है । मेरा जन्म इस्वीसन १९२१ की १५ अगस्त को हुआ था । भारतीय पंचाग के आधार पर वो दिन श्रावण सुद बारस, सोमवार का था । माताजी के कहने के मुताबिक वो सुबह का समय था, और जन्म के करीब दस मिनट बाद सूर्योदय हुआ था । उस वक्त गाँवमें सब के पास घडी नहीं रहती थी इसलिए जन्म का निश्चित समय बताना कठिन है ।
श्री अरविंद का जन्म १५ अगस्त को हुआ था । कई नामी-अनामी व्यक्तिओं का जन्म उसी दिन हुआ होगा, कईयों की मौत हुई होगी । मैंने सुना की रामकृष्ण परमहंसदेव का शरीर भी १५ अगस्त को रात १ बजे शांत हुआ था । मेरे जन्म के कई साल बाद १५ अगस्त के दिन ही भारत को आझादी मिली थी । ये सब बताकर मुझे अपने जन्मदिन का महत्व सिद्ध नहीं करना है । ईश्वर के दरबार में हरेक दिन समान होते है । हररोज कुछ-न-कुछ अच्छे और बुरे वाकया होते रहते है ।
हमारे ग्रंथो में अक्सर एसा वर्णन आता है कि जन्म के वक्त सुगंधित वायु बहने लगा, नदियों के नीर कलकल निनाद करने लगे, धरती सश्यश्यामला हो गयी, देवों ने आकाश से पुष्पवृष्टि की वगैरह वगैरह । ये सच है या नहीं, इसके बारे में चर्चा करने का मेरा कोई प्रयोजन नहीं है । मेरा जीवन आम आदमियों से शुरु-से अलग रहा है इसलिये कूतुहलवश होकर मैंने माताजी को पूछा था की क्या मेरे जन्म समय ऐसी कोई घटना घटी थी ? मेरे जन्म से घर में कोई महत्वपूर्ण बदलाव आया था ? जैसे की कुछ महापुरुषों के बारे में सुनने में आता है की वे जन्म से सर्वगुणसंपन्न थे, रामनाम जपने लगे थे, पूर्ण विकसित पैदा हुए थे, एसा कुछ मेरे बारे में हुआ था ? माताजी ने उसके उत्तर में कहा था की एसा कुछ नहीं हुआ था । न तो किसीने फुल बरसाये थे, और ना ही किसीने गीत गाये थे । अगर किसीने सूक्ष्म रूप में आकर एसा किया हो तो राम जाने । हमारे घर की आर्थिक स्थिति पहले भी साधारण थी और बाद में भी वैसी रही थी । ये मैं बताना इसलिये जरूरी समजता हूँ क्योंकि लोग बाद में अपनी कल्पना के रंग भरकर हकीकत को नया मोड दे देते है ।
सन १९२१ में भारत देश गुलाम था । देश पर अंग्रेजो की हुकूमत चल रही थी । देश के प्रमुख नेता देश को आजाद करने की योजना बना रहे थे । एसे माहोल में पुष्पवृष्टि या गानवादन शोभास्पद और समयोचित भी नहीं थे । इसलिये मेरा जन्म साधारण रहा होगा एसा मानकर चल सकते है ।
जन्म-समय के मुताबिक मेरी राशि धन (भ, ध, फ, ढ) आयी और इसके मुताबिक मेरा नाम भाईलाल रक्खा गया ।