साधुपुरुष से मुलाकात का एक ओर प्रसंग याद पडता है, उसके बारे में यहाँ बता दूँ । कॉलेज में परीक्षा के दिन थे । इम्तिहान देकर विल्सन कॉलेज से मैं बाहर निकला तो गेट के पास ही एक साधु को देखा । वो कोई फकीर जैसा दिखता था । उसने मुझे ईशारे से अपनी ओर बुलाया । कुतूहलवश होकर मैं उसके पास गया । उसने मुझे ओर करीब आने का संकेत किया और अपना छाता उठाकर आसपास देखा । जब उसने यह देखा की कोई आसपास नहीं है तो मुझे धीरे से कहा, जेब में कीतने पैसे है ?
उस आदमी का बर्ताव मुझे विचित्र लगा । मैंने एसा साधु पहले कभी नहीं देखा था । उसके चहेरे पर सात्विकता का अंश नहीं था । उसे देखकर मुझे थोडी हैरानी हुई । किसी अनजान छात्र को पास बुलाकर कुछ ओर पूछने के बजाय सीधा ये पूछना कि जेब में कितने पैसे है, मुझे अभद्र लगा ।
मैं सोच में पड गया । मेरे जेब में कितने पैसे है इससे यह साधु का क्या तालुक्कात ? मेरे विचारों से मेरी मुखमुद्रा कुछ बदल गई । साधु ने अपना प्रश्न फिर दोहराया और आसपास दृष्टि घुमाकर फिर मेरी ओर देखा । उसके मुँह पर मेरे उत्तर की जिज्ञासा बनी हुई थी ।
उसकी जिज्ञासा शांत करने के लिए मैने उत्तर दिया, एक छात्र के पास कितने पैसे हो सकते है ? ये कॉलेज है, पढने की जगह है, नौकरी करने की नहीं । मैं एक साधारण छात्र हूँ । आप तो कोई साधुपुरुष जैसे दिखते है, फिर आपको पैसे से क्या लेना-देना ? मेरी जेब में कितने पैसे है, यह जानकर आपको क्या मिलेगा ? किसी भी पूर्व परिचय बिना एसा प्रश्न करना क्या उचित है ?
मेरी बात सुनकर उसे लगा की बात कुछ उल्टी दिशा में जा रही है । शायद उसने सोचा था की उसके प्रश्न के उत्तर में मैं उसे सच-सच बता दूँगा कि मेरी जेब में कितने पैसे है मगर उसकी दाल गली नहीं । ओर तो ओर, तीन-चार लोग हमारी बातचीत सुनकर पास आ गये । किसीको भी हमारे जैसे दो पूर्णतया भिन्न व्यक्तित्ववाले आदमी को साथ में खडे हुए देखकर आश्चर्य और कुतूहल होना लाजमी था । वक्त की नजाकत को देखते हुए उसने दुसरा पासा फेंका । उसका यह नया रूप किसी भी अनुभवी और विवेकशील आदमी को मात करने और अपनी ओर प्रभावित करने में समर्थ था । उसने कहा, तुमको साधुओं की शक्ति का अंदाजा नहीं । यह देखो मेरी सिद्धियों का परिचय ।
एसा कहकर उसने फिर आसपास देखा, ये निश्चित करने के लिए की कोई हमारी ओर नहीं आ रहा, और फिर छाते को उठाकर अपने केश की पांच-सात लटों को पकडा । केश की लटों को जैसे उसने दबाया, उनमें से दूध निकलने लगा । मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ । मुझे तुरन्त समझ में आ गया की ये मुझे प्रभावित करने की उसकी चाल थी । उसकी ये जादुविद्या या चमत्कारिक शक्ति के लिए उसकी प्रसंशा करने की मुझे जरूरत नहीं लगी । मुझे मदारी याद आया जो मर्कट को नचाता है, खेल करता है और फिर पैसे माँगने निकल पड़ता है । एसे कई मदारीयों को मैंने चौपाटी पर खेल करते हुए देखा था । लेकिन यह साधु तो मदारी से भी बदतर लगा क्यूँकि मदारी तो खुलेआम लोगों को करतब दिखाता है, जब की ये साधुने ठगविद्या की आजमाईश की ।
तीन-चार मिनट अपने बालों में से दूध निकालने के पश्चात उसने अपने हाथ पोंछ लिए । उसकी दृष्टि मेरी जेब पर थी । फिर उसने कहा, अब तो बता दो, जेब में कितने पैसे है ? जितने भी है, मुझे दे दो ।
अब तक तो बात कितने पैसे है वो जानने की थी मगर अब हद हो गई । उसने निर्लज्ज होकर मुझे कहा की जो भी हो, मुझे दे दो । मैंने हिंमत जुटा कर उसे कहा, आपको पैसे से क्या काम ? मेरे पैसे आपके क्या काम आयेगें ?
वो बोला, ये सब बताने का अब वक्त नहीं है । आप सिर्फ जल्दी से मुझे पैसे दे दो, मुझे चाय पीनी है । भगवान आपका भला करेगा । आप खुब पढकर बडा नाम कमायेंगे ।
मैंने सोचा कि जो आदमी अपने केश में से दूध निकाल सकता है, वो एक कप चाय के लिए क्यूँ भीख माँगता होगा ? वो दूध क्यों नहीं पी लेता ? और अगर चाय ही पीनी है, तो दूध बेचकर पैसे क्यूँ नहीं कमाता ? ओरों को प्रभावित करने के लिए फुटपाथ पे ठगविद्या के प्रयोग क्यूँ करता है ?
अपने विचारों को मैंने अपने पास ही रखे । उसे प्रदर्शित करने में समझदारी नहीं थी । मैंने निर्भयता से उसे कहा, अगर आपने मुझे पहले बताया होता कि आपको चाय के लिए पैसे चाहिए तो मै खुशी से दे देता । मगर आपने गलत रास्ता ईस्तमाल किया । फिर भी, मैं आपको चाय के लिए पैसे देता हूँ ।
मैंने पैसे दिये, मगर साधुको वो कम लगे । शायद उसकी उम्मीद ज्यादा पैसे की थी । उसने कहा, आपकी जेब में जितने भी पैसे है, मुझे वो सब दे दो ।
मैंने कडा रुख अखत्यार करते हुए कहा, मेरे पासे इतने ही पैसे है, और आपकी चाय के लिए वो पर्याप्त है ।
उसे लगा की अब दुराग्रह करने से कोई फायदा नहीं होगा ।
वो बोला, ठीक है, अब आप सीधे-सीधे चले जाओ, पीछे मुड़के नहीं देखना, अगर देखोगे तो अच्छा नहीं होगा ।
मैं हेन्गींग गार्डन की ओर निकल पडा और वो किसी ओर दिशा में चल पडा ।
बडौदा में पुनरावर्तन
तकरीबन एक साल के बाद फिर से बंबई की उस घटना का पुनरावर्तन हुआ । उस वक्त मैं बडौदा में था और दोपहर के वक्त कमाटीबाग से गुजर रहा था । जैसे ही मैं उसके मुख्य प्रवेशद्वार से गुजरा की तीन साधु जैसे लोग मेरे पास आये । वो मुझे केम्प के रास्ते पर ले गए और कहने लगे, आपका चहेरा बहुत तेजस्वी है, आप बडे भाग्यवान है । आपको बहुत धन मिलेगा, आपका सभी जगह यश होगा । आपकी किस्मत चमकनेवाली है । एसा कहके फिर वो बोले, आपकी जेब में जितने भी पैसे है, वो हमें दे दो ।
फिर वो आसपास देखने लगे । जब उन्होंने देखा की कोई नजदीक नहीं है तो हाथ में अपने बालों की लटों को पकडा । मेरे लिए इतना काफि था । बंबई का साधु मुझे तुरन्त याद आया । मैंने उन लोगों को हिम्मत से कहा, मुझे कुछ देखने की जरूरत नहीं है । आपको मैं एक भी पैसा नहीं दूँगा । मैं जानता हूँ आप लोग क्या करते है । आप लोगों को फँसाते है । मैं आपकी जाल में फँसनेवाला नहीं । मैं अभी पुलिस को बुलाता हूँ और आपका पर्दाफाश करता हूँ ।
मेरी बात सुनकर वो हैरान रह गये । एसे प्रत्युत्तर की उनको अपेक्षा नहीं थी । योगानुयोग थोडी दूरी पर एक पुलिस खडा था । पुलिस को देखकर वे डर गये और बोले, बस, जोर से मत चिल्लाओ, ओर वो चल पडें ।