चंपकभाई के साथ मेरा स्नेहसंबंध दिन-प्रतिदिन बढता चला । एक दफा मैं चंपकभाई के साथ दहेरादून गया । वहाँ जाकर हमने कुछ दिनों तक अभय-मठ में निवास किया । उन दिनों की ये बात है । मठ के आसपास रहनेवाले दो व्यक्ति मुझे मिलने के लिए शाम को आते थे मगर मुझे ध्यान में देखकर वापिस चले जाते थे । उन्होंने चंपकभाई को कहा कि उन्हें महात्माजी से (मुझसे) मुलाकात करनी है ।
जब चंपकभाईने उनकी दिलचस्पी की वजह पूछी तो उन्होंने अपने स्वप्न दर्शन की बात बताई जिसमे उन्होंने मुझे देखा था । उन्होंने ये कहा की उनकी इच्छा महात्माजी को अपने घर ले जाकर आतिथ्य सत्कार करने की है ।
चंपकभाई को यह बात सुनकर हैरानी हुई । उन्होंने मुझे ये बात बताई । मुझे भी ताजुब्ब हुआ । एक दिन जब हम दोनों – मैं और चंपकभाई – अभयमठ में टहल रहे थे तो वे आ पहूँचे । उस वक्त मेरा मौनव्रत था इसलिए मैंने इशारे से उनको अगले दिन मिलने के लिए आने का सूचन किया । जब वे मिलने आयें तो उनका आग्रह देखकर मैंने उनके घर भोजन के लिए जाना स्वीकार किया ।
दूसरे दिन सुबह होते दोनों भाई हमें ले जाने के लिए आ पहूँचे । कुछ औपचारिक बातें करने के बाद हम उनके घर की ओर चल पडे । उन्होंने बडे प्यार से हमें भोजन करवाया । भोजन के बाद जब हम निकल रहे थे तो अंदर से वृद्ध माताजी बाहर आई । उनके हाथ में पानी से भरी हुई कटोरी थी । उनकी इच्छा थी की मैं वो कटोरी को स्पर्श करुं ताकि वो पानी पीने से उसकी बिमारी ठीक हो जाय । वृद्धा लंबे अरसे से पथारीवश थी । डॉक्टरों के इलाज के बावजूद उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ था । बिमार व्यक्ति हमेशा किसी साधुसंत से आशीर्वाद की कामना करतें है । वृद्ध माताजी कोई अपवाद नहीं थी । उनकी मरजी मुझसे स्पर्श करवाने की थी मगर मुझे अपनी योग्यता के बारे में सोचना था । मेरा मानना था कि मैं एक साधारण व्यक्ति था । मुझमें ना तो कोई विशेष योग्यता थी और ना ही कोई सिद्धि या शक्ति । वृद्धा की प्रार्थना स्वीकार करना मुझे ठीक नहीं लगा । मैंने उनको समझाने का भरपूर प्रयास किया मगर वो अपनी बात पर अडी रही । मैंने घर के लोगों को माताजी को समझाने के लिए विनती की मगर उन्होंने वृद्धा का समर्थन किया । अब वृद्धा की प्रार्थना स्वीकार करने का दबाव मुझ पर आ पडा ।
मैंने कहा, मैं संतपुरुषों के आशीर्वाद में अवश्य यकीन करता हूँ मगर आजकल एसे समर्थ संतपुरुष कहाँ दिखाई देते है ? ज्यादातर साधुसंत साधारण योग्यतावाले होते है और चमत्कार की बातें करके आम आदमी को लूटते है । आप तो पढे-लिखे हो फिर भी आप इस बात को प्रोत्साहन दे रहे हो यह आश्चर्यजनक है । सिद्ध संतपुरुषों के आशीर्वाद में असाधारण शक्ति होती है ओर असंभव को संभव करने की ताकत होती है । मगर मैं तो एक साधारण साधक हूँ । मेरी मर्यादाओं का मुझे अच्छी तरह से ज्ञान है । इसलिए मेरा आपसे नम्र निवेदन है कि आप वृद्ध माताजी को समझायें । अगर वो मान जायेगी और अपना आग्रह छोड देगी तो मुझे बहुत आनंद होगा ।
मगर वृद्ध माताजी अपनी बात पर दटी रही । अन्त में मुझे उनकी भावना का समर्थन करना पडा । मैंने उनसे कहा कि सिर्फ आपके कहने पर मैं इस कटोरी को स्पर्श कर रहा हूँ । आपका स्वास्थ्य अच्छा हो या न हो यह ईश्वर के हाथ में है ।
अभयमठ में वापिस आने के बाद मैंने चंपकभाई से कहा की अब यहाँ ज्यादा रहना अच्छा नहीं होगा । जैसे जैसे हमारा परिचय बढता जाएगा, अज्ञातवास में रहकर एकांतिक जीवन बीताना मुश्किल हो जायेगा । बहेतरी इसमें होगी अगर हम वापिस ऋषिकेश की ओर चल पडें । अगर आपकी इच्छा हो तो आप दहेरादून में रुक सकते हो, मगर मैं तो आज ही ऋषिकेश के लिए प्रस्थान करूँगा ।
चंपकभाई मेरी बात से सहमत हुए । मैं उसी शाम दहेरादून से ऋषिकेश के लिए निकल पडा । कुछ दिन वहाँ रुकने के बाद चंपकभाई ऋषिकेश आये । उन्होंने मुझे बताया कि मेरे जाने के बाद दोनों भाई मुझे ढूँढते हुए वहाँ आये थे । साथ में कुछ ओर लोग भी दर्शन के लिए आये थे । वृद्ध माताजी का स्वास्थ्य कटोरी का पानी पीने के बाद सुधरने लगा था । घर के सभी लोगों की आस्था मेरे प्रति बढ गई थी । वे चंपकभाई को मेरा ऋषिकेश का पता पूछ रहे थे । मैंने चंपकभाई को मना किया था इसलिए उन्होंने पता बताने से इन्कार किया ।
मैंने कहा, केवल इश्वर की कृपा से वृद्धा को आराम हुआ वरना मुझमें एसी क्या है ? यह तो एसा हुआ मानो कौआ डाली पर बैठा और डाली तूट गई । इस बात से मुझे गर्व करने की या बेवजह खुश होने की आवश्यकता नहीं है ।
चंपकभाई के नाम अंग्रेज सरकार का वारंट था इसलिए उन्हें बडी सावधानी बरतनी पडती थी । उन्होंने अपना नाम बदल कर मनुभाई कर दिया था । अपने मित्रों के साथ पत्रव्यवहार में भी वो मनुभाई नाम का प्रयोग करते थे । बंबई की पोलिस उन्हें ऋषिकेश आकर कब ढूँढ निकाले यह किसको पता ? सदैव जाग्रत और होंशियार रहने में उनकी भलाई थी ।
कुछ हप्ते बाद हम दहेरादून के पास सहस्त्रधारा नामक सुंदर स्थान को देखने के लिए गए थे । नाम के अनुरुप वहाँ पानी की सहस्त्र धाराएँ बहती है । उस स्थान को देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई । लौटते वक्त रायपुर में हमें माता आनंदमयी के दर्शन का लाभ मिला । उनका व्यक्तित्व आकर्षक था । हमने रायपुर के उनके आश्रम की मुलाकात ली ।
दहेरादून में श्री भैरवदत्त जोशी नामक एक योगीपुरुष निवास करते थे । उनसे मेरी पहेली मुलाकात ऋषिकेश के भरत मंदिर में हुई थी । साधना के पथ पर उन्हों ने काफि प्रगति की थी । उनके साधनात्मक अनुभवों को सुनकर बडा आनंद मिलता था । उनका स्वभाव शांत था । वे औषधि के बहुत अच्छे ज्ञाता थे । गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के बावजूद उनका मन ईश्वरपरायण था । आत्मिक उन्नति की इच्छा वाले सांसारिक जनो के लिए उनका जीवन अनुकरणीय था । अपने पूर्व जीवन में वो सरकारी नौकरी करते थे । किसी कारणवश उन्होंने नौकरी छोड दी थी और अपना पूरा ध्यान साधना में केन्द्रित किया था । मुझे मिलनेवाले कई नामी-अनामी सज्जन पुरुषों की गिनती में उनका विशेष स्थान है । वो न केवल मुझ पर विशेष प्यार बरसाते थे मगर चंपकभाई को अच्छा मशवरा भी देते थे ।