क्या आदमी अपने पूर्वजन्म के बारे में जान सकता है ? मैं उसके प्रत्युत्तर में कहना चाहूँगा की हाँ, अवश्य जान सकता है । आज तक कई लोगों को एसा ज्ञान हुआ है और मेरा मानना है की संनिष्ट प्रयास करनेवाले अन्य लोगों को भविष्य में एसा ज्ञान हो सकता है । पूर्वजन्म के बारे में संदेह करने की आवश्यकता नहीं है । हमारे धर्मग्रंथो में पूर्वजन्म के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है । भगवद् गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कहा, हे अर्जुन, तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं । मैं उन सबके बारे में जानता हूँ मगर तू उसे नहीं जानता । तुलसीकृत रामायण में काकभुशुंडजी अपने पूर्वजन्मों के बारे में बताते हैं । श्रीमद् भागवत में जडभरत के पूनर्जन्म का प्रसंग आता है । हमारे धर्मग्रंथो में एसे कई उदाहरण हैं, मगर लोग अक्सर सोचतें हैं की यह सब पुरानी बातें हैं । उनको महात्मा वेदबन्धु जैसे अनुभवी संत की बातें सोचने पर मजबूर करेगी । वेदबंधु के अनुभव से सिद्ध होता है की आज भी साधक चाहें तो अपने पूर्वजन्म का ज्ञान पा सकता है । जिन्हें पूर्वजन्म के बारे में शंका है उन्हें प्रथम खुद कोशिश करके उसकी सत्यासत्यता को परखना चाहिए ।
पूर्वजन्म का ज्ञान पाने के लिये साधक को क्या करना चाहिए ? पातंजल योगदर्शन के विभूतीपाद के अढारवें सूत्र में इसका निर्देश है । महर्षि पतंजलि कहते हैं की अंतःकरण में स्थित संस्कारों पर संयम करने से योगी अपने पूर्वजन्म का ज्ञान पा सकता है । वो अगर चाहे तो इसी तरह से किसी अन्य व्यक्ति के बारे में भी जान सकता है । पातंजल योगदर्शन के साधनपाद के ३९ वे सूत्र में कहा गया है की अपरिग्रह का चुस्त पालन करने से पूर्वजन्म और वर्तमान जन्म के रहस्यों का ज्ञान होता है । अपरिग्रहस्थैर्यै पूर्वजन्मकथन्तासंबोध: - अर्थात् अपरिग्रहव्रत से भी पूर्वजन्म का ज्ञान हो सकता है ।
समाधि की सहायता से पूर्वजन्म को जानने का मार्ग योगग्रंथो में बताया गया है । इसके अतिरिक्त प्रेम या भक्ति का मार्ग भी है, जिसे आप ईश्वरकृपा का मार्ग कह सकते हैं । अगर कोई साधक अपने पूर्वजन्म के बारे में जानने के लिये ईश्वर से प्रार्थना करता है तो ईश्वरकृपा से उसे यह ज्ञान हो सकता है । कभीकभा सिद्ध-महापुरुष भी पूर्वजन्म का ज्ञान देते हैं । कई दफा एसा भी होता है की साधक को पूर्वजन्म का ज्ञान पाने की तीव्र ईच्छा नहीं होती, फिर भी ईश्वरकृपा से उसे यह ज्ञान मिलता है । वेदबंधु के अनुभव से यह सिद्ध होता है ।
पूर्वजन्म का ज्ञान आत्मज्ञान या आत्मानुभव से भी मिल सकता है । कुछ साधकों को स्वप्नावस्था या ध्यान तथा समाधि-अवस्था में एसी अनुभूति मिलती हैं । चंद साधकों को जागृत दशा में भी एसी अनुभूति होती है ।
पूर्वजन्म का ज्ञान पाने के लिये साधक को क्या करना चाहिए ? पातंजल योगदर्शन के विभूतीपाद के अढारवें सूत्र में इसका निर्देश है । महर्षि पतंजलि कहते हैं की अंतःकरण में स्थित संस्कारों पर संयम करने से योगी अपने पूर्वजन्म का ज्ञान पा सकता है । वो अगर चाहे तो इसी तरह से किसी अन्य व्यक्ति के बारे में भी जान सकता है । पातंजल योगदर्शन के साधनपाद के ३९ वे सूत्र में कहा गया है की अपरिग्रह का चुस्त पालन करने से पूर्वजन्म और वर्तमान जन्म के रहस्यों का ज्ञान होता है । अपरिग्रहस्थैर्यै पूर्वजन्मकथन्तासंबोध: - अर्थात् अपरिग्रहव्रत से भी पूर्वजन्म का ज्ञान हो सकता है ।
समाधि की सहायता से पूर्वजन्म को जानने का मार्ग योगग्रंथो में बताया गया है । इसके अतिरिक्त प्रेम या भक्ति का मार्ग भी है, जिसे आप ईश्वरकृपा का मार्ग कह सकते हैं । अगर कोई साधक अपने पूर्वजन्म के बारे में जानने के लिये ईश्वर से प्रार्थना करता है तो ईश्वरकृपा से उसे यह ज्ञान हो सकता है । कभीकभा सिद्ध-महापुरुष भी पूर्वजन्म का ज्ञान देते हैं । कई दफा एसा भी होता है की साधक को पूर्वजन्म का ज्ञान पाने की तीव्र ईच्छा नहीं होती, फिर भी ईश्वरकृपा से उसे यह ज्ञान मिलता है । वेदबंधु के अनुभव से यह सिद्ध होता है ।
पूर्वजन्म का ज्ञान आत्मज्ञान या आत्मानुभव से भी मिल सकता है । कुछ साधकों को स्वप्नावस्था या ध्यान तथा समाधि-अवस्था में एसी अनुभूति मिलती हैं । चंद साधकों को जागृत दशा में भी एसी अनुभूति होती है ।
मुझे याद पडता है की मेरी कुमारावस्था में, जब मैं एक महापुरुष का जीवनचरित्र पढ़ रहा था, मुझे एसा लगा की ये मेरा ही जीवनचरित्र है । तब तो मैं एक बालक-सा था, जीवन के रहस्य या साधना का कोई विशेष ज्ञान मेरे पास नहीं था, तथा वो महापुरुष की तुलना में मेरी योग्यता सिंधु के आगे बिन्दु के जैसी थी । अगर मैं अपने मन की बात किसीको बताता तो वो अवश्य हँसता । मगर एसा भाव मेरे दिल में क्यूँ पैदा हुआ इसकी कोई वजह मेरे पास नहीं थी । मानो यह भावानुभव बिल्कुल सहज था । शायद मेरे पूर्वजन्म की स्मृति मुझे झुँझला रही थी । वक्त के चलते हुए यह स्मृति-भाव शांत हुआ मगर मन अपना काम करने लगा । मैं सोचने लगा की मैं बिल्कुल सीधासाधा नवयुवान हूँ । क्या सचमुच पूर्वजन्म में मैं यह महापुरुष रहा हूँगा या मेरी भावनाएँ मुझे बहेका रही है ? जो भी हो, इस बात को मैं अपने मन से पूरी तरह से नहीं निकाल पाया ।
उस अनुभव को बरसों बीत गये । मैंने साधनात्मक जीवन शुरु किया, मेरी रहनसहन बदल गई । शांति की झंखना और आध्यात्मिक प्रगति को लेकर पूर्वजन्म की बात कहीं छीप गई । मगर वेदबंधुने टीहरी में जब अपने पूर्वजन्म की बात छेडी तो मेरे विचार पुनः प्रबल हो उठे । इतना कम था की देहरादुन में योगी भैरव जोशी से भेंट हुई । उनकी पूर्वजन्म की बातें सुनकर मुझे लगा की मुझे भी यह ज्ञान होना चाहिए । साधनापथ पर मुझे भिन्न-भिन्न अनुभवों को पाना चाहिए ।
मैं कई बार सोचता की मेरी उम्र के बहुत सारे नौजवान मौजमस्ती में अपना वक्त बीताते हैं तो मैं ईश्वर और आध्यात्मिकता की ओर क्यूँ खींचा चला जाता हूँ ? साधना द्वारा परमात्म-प्राप्ति करने की तमन्ना मुझमें ही क्यूँ है ? शायद इन प्रश्नों के उत्तर मेरे पूर्वजन्म में छीपे हैं । मेरे मन में मनोमंथन चलता रहा । आखिरकार मुझे लगा की तसल्ली के लिये भी मुझे पूर्वजन्म का ज्ञान हासिल करना चाहिए ।
मगर केवल इच्छा करने से क्या होता है ? पूर्वजन्म का ज्ञान पाने के लिये मेरे पास कोई विशेष साधनात्मक भूमिका नहीं थी । मेरे पास तो था केवल प्रार्थना का बल और ईश्वर पर अतूट भरोंसा । मैंने व्याकुल होकर दिनरात प्रभु से प्रार्थना करनी शुरु की । शुरु के एक-दो दिन भूखा रहा । मेरी तो यही रीत है । मेरे पास ज्ञान, भक्ति, तप या मंत्र का बल नहीं है, जो भी है वो प्रेम है । मुझे जो भी चाहिये वो मैं प्रभु से माँगता हूँ । जैसे बच्चा माँ से रोकर अपनी बात कहेता है इसी तरह मैं अपनी बात प्रार्थना के माध्यम से व्यक्त करता हूँ । मेरा जीवन उत्कट प्रार्थना और उसके फलस्वरूप हुई ईश्वरकृपा का परिणाम मात्र है । यही मेरी समग्र साधना का सारांश है ।
पूर्वजन्म का रहस्य ज्ञानने के लिये मैं आतुरता से प्रार्थना करने लगा मगर उसका कोई परिणाम नहीं मिला । वक्त के चलते पूर्वजन्म जानने का मेरा विचार मंद हो गया । फिर मैंने सोचा, अगर प्रभु की ईच्छा हुई तो वे मुझे पूर्वजन्म का ज्ञान अवश्य देंगे ।
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उन्हीं दिनो, देहरादुन से दो संन्यासी भाई उत्तरकाशी आये थे । उनको जमनोत्री की यात्रा करनी थी । उन्होंने मुझे साथ चलने का निमंत्रण दिया । मैंने उसका सहर्ष स्वीकार किया । हम जमनोत्री के लिये निकल पडे । हमने आपस में तय किया था की यात्रा समाप्त होने पर हम उत्तरकाशी रूकेंगे ।
जमनोत्री की वह यात्रा मेरे लिये अत्यंत फलदायी सिद्ध हुई क्योंकि जमनोत्री के दर्शन होने के साथ-साथ वहाँ मुझे अपने पूर्वजन्म का ज्ञान मिला । ईश्वरने कृपा करके मेरी भावना पूर्ण की । आश्चर्य की बात तो यह है की जब मैंने प्रयत्न किया तब पूर्वजन्म का ज्ञान नहीं मिला, और जब प्रयास छोड दिया तो आकस्मिक यह ज्ञान मिला । सचमुच, ईश्वर की लीला अपरंपार है । हमारे कर्मों का फल हमें कब, कैसे और कहाँ मिलता है उसे कोई जान नहीं पाता । भूमि में बोया हुआ बीज जिस तरह निश्चित वक्त के बाद सुयोग्य वातावरण मिलने पर अंकुरित होता है, उसी तरह वक्त आने पर हमें अपने कर्मों का फल मिलता है । साधको से मेरी गुजारिश है की उन्हें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए ।