वर्तमान भारत में समर्थ संतो और मानवरत्नों की कमी नहीं है । पुलिनबाबु तथा उनकी धर्मपत्नी आम आदमी नहीं थे । मेरे दक्षिणेश्वर निवास के दौरान मुझे उनकी विशेषताओं का परिचय मिला ।
वैसे तो मेरी ईच्छा जाडे की मौसम खत्म होने तक दक्षिणेश्वर में रहने की थी मगर तीन-चार दिन रहने के बाद मुझे देवप्रयाग जाने की प्रेरणा हुई । मुझे लगा की साधना के जिस मकाम पर मैं पहूँचना चाहता हूँ, उसके लिये देवप्रयाग बहेतर है । देवप्रयाग वैसे भी दक्षिणेश्वर से अधिक एकांत और शांत था । मैंने पुलिनबाबु को इसके बारे में बताया । मेरी बात सुनकर वे उदास हो गये ।
पुलिनबाबु की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी । मुझे इसका कुछ अंदाजा था फिर भी, मैंने उनसे कहा की देवप्रयाग जाने के लिये मुझे तीस रुपयों की जरूरत पडेगी ।
दुसरे दिन जब पुलिनबाबु मुझे मिलने आये तो उन्होंने कहा, 'आपके देवप्रयाग जाने की बात सुनकर मेरी धर्मपत्नी रो पडी, मैं भी बैचेन रहा । पिछले कुछ दिनों में, हमें आपसे लगाव-सा हो गया है । जब आपने टिकट के लिये पैसे की बात की तो मुझे हर्ष और शौक – दोनों हुए । हर्ष इस बात का हुआ की हम आप जैसे महात्मा पुरुष के कुछ काम आ सकेंगे, गम इस बात का हुआ की हम आपको सहायता कैसे करें । हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है । पीछले दस साल से मैं कुछ कामधंधा नहीं करता । घर की हालत एसी है की कल खाने के लिये क्या होगा यह निश्चित रूप से कहा नहीं जाता । मेरी एसी हालत मेरे मित्र की वजह से हुई है । मैंने उसके साथ भागीदारी में व्यापार शुरु किया था और उसने मेरे साथ विश्वासघात किया । तब से लेकर गुजारा करना हमारे लिये दुश्वार हो गया है ।'
उनकी बात सुनकर मुझे बडा दुःख हुआ । मगर बात मुँह से बात निकल गई थी, उसे वापिस कैसे लिया जाय । हे प्रभु, तूने मुझे कैसी दुविधा में डाल दिया ? फिर सोचा की ईश्वर ने बिना वजह यह बात मेरे मुँह से नहीं कहलवायी होगी ।
मैंने उन्हें भरोंसा देते हुए कहा की ईश्वर की कृपा से सबकुछ ठीक हो जायेगा ।
वो कहने लगे, 'कल से मुझे चिंता खाई जा रही थी की मैं आपकी सहायता कैसे करूँ ? रात को जब मेरी धर्मपत्नीने मुझे पूछा तो मैंने आपकी बात बताई । उसने मुझे आश्वासन देते हुए कहा, इसमें चिंता करने की क्या बात है ? भले हमारे पास पैसे नहीं है मगर मेरे गहने तो है ना । महात्माजी की टिकट के लिये हम गहने बेच देंगे । हमारी एसी किस्मत कहाँ की हम उनके काम आ सके ?'
पुलिनबाबु भाववश होकर बोले, 'मेरी धर्मपत्नी सचमुच एक देवी है । उसी के कारण मैं पिछले दस साल से किसी भी तरह घर चल जाता है । उसीने मुझे कहा था की जिस मित्र ने मेरे साथ विश्वासघात किया है, उसकी वो जाने, हमें ईश्वर का शरण लेना चाहिए । अगर हम उसकी शरण में है, तो वो हमारा खयाल क्यूँ नहीं रक्खेगा ? वो अपने शरणागत भक्तों को कभी भूखा नहीं रखता । हम किसी और के आगे हाथ फैलाने के बजाय केवल रामकृष्णदेव के आगे ही अपना हाथ फैलायेंगे । बस, तब से परमहंस देव ही हमारा जीवननिर्वाह करते हैं । मेरी पत्नी के कहने पर मैंने व्यसनों को तिलांजली दे दी । मेरी धर्मपत्नी सचमुच देवी है । अब उसने कहा है तो हम गहने बेचकर भी आपकी मदद करेंगे ।'
यह बात सुनकर मुझे पुलिनबाबु की धर्मपत्नी पर असाधारण आदरभाव हुआ । हाँ, उसकी गहने बेचने की बात मुझे पसंद नहीं आयी ।
मैंने पुलिनबाबु से कहा, 'आपको गहने बेचने की जरूरत नहीं पडेगी । ईश्वर अवश्य इस समस्या का हल निकालेगा ।'
फिर मैं उनके घर खाने के लिये गया । वहाँ, उनके घर पर एक आदमी आया ।
मुझे प्रणाम करके पुलिनबाबु को पूछने लगा, 'महात्माजी कहाँ से आये हैं ?'
'हिमालय से', पुलिनबाबु ने प्रत्युत्तर दिया ।
'हिमालय से ?'
'हाँ'
'मैं उनकी कुछ सेवा करना चाहता हूँ ।'
पुलिनबाबु ने मेरी ओर देखा और कहा, जैसी आपकी मरजी ।'
उस आदमीने अपनी जेब में से नोटों का बन्डल निकाला और कहा, बोलो, कितनी सेवा करूँ ?
पुलिनबाबु ने कुछ नहीं कहा । उसने पचीस रूपिया निकाल कर मुझे दिये और चला गया । पुलिनबाबु और उनकी धर्मपत्नीनी की आँखे भर आयी ।
'यही तो था मेरा मित्र', पुलिनबाबु ने कहा, 'मेरे साथ कपट करनेवाला यही तो था । दस साल के बाद आज पहेली दफा वो यहाँ आया । वैसे हमारा आपस में बात करने का भी रिश्ता नहीं है ।'
मैंने कहा, 'ईश्वर की लीला अनोखी है । वो अगर चाहे तो गूँगे को बोलता कर दे और शत्रु को मित्र कर दें । आपने जिस परमात्मा का शरण लिया है, उसीने यह लीला की है । अब आपको गहने बेचने की जरूरत नहीं पडेगी । आप रामकृष्णदेव की उपासना में जुटे रहो । आपने देखा की भगवान सचमुच भक्त की चिंता करता है और उसके योगक्षेम का वहन करता है ।'
भोजन के बाद हम दक्षिणेश्वर होते हुए पंचवटी गये । दूसरे दिन सुबह एक सदगृहस्थ ने अपनी मरजी से पुलिनबाबु को पाँच रूपये दिये । इस तरह कुल मिलाकर तीस रूपये का इन्तजाम हो गया ।
पुलिनबाबु ने कहा, 'मेरी पत्नी की इच्छा आपसे दीक्षा लेने की है ।'
मैंने कहा, 'उसे दीक्षा लेने की क्या जरूरत है ? उसे कहो की रामकृष्णदेव पर अपनी श्रद्धा बनायें रखें और प्रेमपूर्वक ध्यान व प्रार्थना जारी रखें । एक दिन अवश्य उसे रामकृष्णदेव के अनुग्रह का अनुभव होगा ।'
मंदिर जाकर दर्शन किये, दक्षिणेश्वर के दिव्य स्थान को गदगदित होकर प्रणाम किये, और फिर स्टेशन की ओर चल पडें । ट्रेन में मुझे बिदा करते वक्त पुलिनबाबु की आँखें भर आयी । ट्रेम छुटने के बाद भी मेरे मन में भक्तदंपत्ति का पवित्र स्मरण चलता रहा । बार बार उनके शब्द, 'गहने बेच देंगे' कानों में सुनाई दिये । मैंने आर्त हृदय से प्रभु को प्रार्थना की । हे प्रभु ! अपने सच्चे और शरणागत भक्तों पर विपत्तिओं की झडी मत बरसाना । उनकी सर्व प्रकार से सहायता करना और अपनी संनिधि का वरदान देना ।
मन-ही-मन सोचा की फिर उनसे भेंट होंगी तब मैं उनकी साधना में सहायता करूँगा ... मगर बाढ में बह जानेवाली लकडीयों की तरह फिर उनसे भेंट नहीं हो पायी । कुछ ही समय बाद पुलिनबाबु का स्वर्गवास हो गया । मगर दिलो-दिमाग में आज भी उनकी स्मृति बनी हुई है ।