जब मैं धरमपुर था तो सिंधी शेठ के निमंत्रण से दहेरादून के योगी श्री भैरव जोषी वहाँ आये । सेनेटोरियम के पारसी डोक्टर को यह पसंद नहीं आया । उन्होंने चंपकभाई को कहा, 'अब एक महात्मा कम थे, जो शेठ ने दूसरे को बुलाया । अगर सेनेटोरियम में इस तरह से महात्मा आने लगे तो हमारा धंधा चौपट हो जायेगा । फिर हमारा भाव कौन पूछेगा ?'
चंपकभाई क्या कहें ? मैं डोक्टर की बात समज सकता था । सेनेटोरियम में भर्ती हुआ मरीझ किसी भी तरह से ठीक होना चाहता है । जीने की उम्मीद में संत-महात्माओं से दर्शन-सत्संग करके उनके आशीर्वाद पाना चाहता है । अगर एसा करने से उसका दर्द कम होता है, या वो जल्दी ठीक हो जाता है तो डोक्टर की आजीविका पर असर पड सकता है । मगर सच्चे डोक्टर के लिये क्या जरूरी है ? दवाखाना में ढेरों की संख्या में भर्ती हुए मरीझ या जल्ज-से-जल्द दर्द से मुक्ति पाकर सेहतमंद हुए लोग ? हमारी ये बदनसीबी है की ज्यादातर लोग अपने निहीत स्वार्थ को प्राधान्य देते हैं । उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा पैसा बटोरने का होता है । यही कारण है की समाज में सेवा, प्रेम और सहकार कम होता दिखाई पड रहा है । अगर हमें आदर्श मनुष्य बनना है, तो हमें दूसरों की सहायता करनी होगी । अपने दृष्टिकोण में सुधार लाना होगा ।
हालाकि पारसी डोक्टर की परेशानी जल्दी खत्म हुई क्योंकि मैंने और जोशीजी ने सीमला जाने का निर्णय किया । वहाँ जाने के पीछे हमारा मकसद आसपास के प्रदेश को देखना तथा सीमला में स्थित जोशीजी के रिश्तेदार को मिलना था । इसके अलावा ईश्वरीय प्रेरणा भी काम कर रही थी, जिसके बारे में हमे वक्त के चलते पता चला ।
धरमपुर से बस में बैठकर हम सीमला पहुँचे । वहाँ से कथ्यु गये । कथ्यु सीमला का एक इलाका है जहाँ जोशीजी के रिश्तेदार रहते थे । वहाँ जाकर सबसे पहला काम हमने अपनी थकान मिटाने का किया । आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य देखनेलायक था । चारों ओर लंबे और घने पेड़ तथा हिमालय की पहाडियाँ हमें आवाज दे रही थी ।
सीमला वैसे तो बडा खुबसुरत शहर है मगर अमीरी के साथ यहाँ गरीबी के दर्शन हो ही जाते है । जैसे हमारे देवीदेवता सर्वव्यापक है, इसी तरह हमारे देश में गरीबी फैली हुई है । बंबई से लेकर कोलकता, मद्रास, रामेश्वर, सीमला, बदरीनाथ या कैलास - कहीं पर भी चले जाओ, आपको अत्र-तत्र-सर्वत्र गरीबी के दर्शन होंगे । देश की एसी दुर्दशा से मुझे बहुत पीडा होती है । जब मैं किसी लाचार, बेबस या निर्धन को देखता हूँ तो मेरा हृदय भर आता है । मैं सोचने लगता हूँ की एसा दिन कब आयेगा जब भारत के सभी लोग भौतिक रूप से समृद्ध होंगे, उनको रहने और खानेपीने की समस्या नहीं होगी, तथा पढ़ने-लिखने की सहुलियत मिलेगी । उस दिन का मुझे बेसब्री से इंतजार है ।
गरीबी महामारी है, तो अमीरी कोई महामारी से कम नहीं । हमारे देश में यह रोग जल्दी से फैल रहा है । अमीर बनने के चक्कर में लोग अपनी मानवता खो बैठते है । कोई भी देश केवल भौतिक समृद्धि के बलबूते पर महान नहीं बनता । नैतिक एवं आध्यात्मिक संस्कार उसे सही मायने में समृद्ध बनाते है । मुझे श्रद्धा है की भारत अपने भूतकालीन गौरव को फिर प्राप्त करेगा और दुनिया को राह दिखायेगा । वह न केवल भौतिक बल्कि आत्मिक समृद्धि से समृद्ध होगा ।
सोचते-सोचते काफि वक्त निकल गया । जोशीजी स्वयंपाकी थे, उन्होंने हमारे लिये खाना पकाया । गृहस्थी होने के बावजूद वे विरक्त जीवन यापन करते थे । भोजन के बाद हमारी चर्चा जारी रही । तब हमारी नजर यकायक द्वार पर पडी । दोपहर का वक्त था । हमने देखा तो एक प्रचंडकाय तेजस्वी पुरुष द्वार पर खडे थे । उन्होंने आधी बाँय का रंगीन खमीस और नीचे धोती पहनी थी । उनके पैरो में चंपल और हाथ में लकडी थी । चहेरे पे ज्यादा बाल नहीं थे । आँखे तेजस्वी थी और कन्धे पर शाल रखी थी । पहली नजर में हम उन्हें पहचान नहीं पाये । मगर इसकी परवाह किये बिना वे चंपल उतारकर अंदर आये और हमारे साथ नीचे बैठ गये । कुछ देर तक हमें देखते रहें ।
मैंने पूछा, 'आपका परिचय ?'
प्रत्युत्तर में उन्होंने जो कहा ये बताने के पहले मैं पाठको को सूचित करना चाहता हूँ की साधारण-से दिखनेवाले वह महापुरुष एक सिद्धपुरुष थे, जिनका नाम नेपालीबाबा था । नेपालीबाबा साधक नहीं, मगर साधक अवस्था पार करके सिद्ध हो चुके महापुरुष थे । उनके जैसे महात्मा भारतभर में गिनेचुने होंगे । उनके दर्शन-सत्संग सभी के लिये कल्याणकारी है । उनसे मिलकर मुझे आश्वासन मिला की इस घोर कलिकाल में भी भारत में सिद्ध महापुरुषों की कमी नहीं है और भारत का आध्यात्मिक भावि निश्चित रूप से उज्जवल है ।