३० जनवरी १९४८ । इतिहास के पन्नों पर काले अक्षर से लिखा जानेवाला वो दिन, जिसने प्रत्येक भारतवासी को रुलाया । मुझे रात को खबर मिली की महात्मा गांधीजी को किसीने गोली मार दी, वे घायल होकर जमीन पर गिर गये और कुछ ही क्षणों में चल बसे । समाचार आकस्मिक थे, इसलिये विश्वास नहीं हुआ, यूँ कहो मानने को जी नहीं किया । खबर की सत्यता जानने हेतु मैंने समीपवर्ती रेडीयो का सहारा लिया । रेडीयो पर सुना तो खबर सही निकली । मेरी आँखो से आँसू छलक पडे, मस्तिष्क पर मानो बिजली गीरी और पैरों तले जमीन निकल गयी । जैसे तैसे करके मैंने अपने आपको सम्हाला । वहाँ उपस्थित एक बहन तो रेडीयो पर खबर सुनकर बेहोश हो गयी और जमीन पर गिर गयी ।
आज तक किसीके मौत की खबर ने मुझे इतना दुःख नहीं पहूँचाया था । मैं शोक के महासागर में डूब गया । तब मुझे यह अहेसास हुआ की मेरे दिल में गांधीजी के लिये कितना प्यार था । और क्यूँ न हो ? जिस महापुरुषने देश और दुनिया की निःस्वार्थ सेवा की थी, भारत को आजादी दिलायी थी, हिंसक ताकतों और शस्त्रों का सामना करके सत्य और अहिंसा की फिलसूफी समजायी थी, देश के कोने-कोने में जागृति और राष्ट्रिय अस्मीता की लहर फैलायी थी, संनिष्ठ देशभक्त कार्यकरों की फोज तैयार की थी, उस पर किसे प्यार नहीं होगा ? मुझे तो था । और यही कारण था की मेरी आँखे नम थी, दिल रो रहा था ।
शून्यमनस्क होकर मैं समाचार सुनता रहा । और कर भी क्या सकता था ? आखिर मौत से बचकर कौन निकल सका है ? सुनने में आया है की यमराज के घर से सावित्री का पति सत्यवान वापिस आया था । गांधीजी सांप्रत समय के सत्यवान है । मौत ज्यादा-से-ज्यादा उनको शरीर से अलग कर सकती है मगर आत्मा तो अमर है । उसे मारने की शक्ति किसी में नहीं । स्थूल रूप से अब गांधीजी के दर्शन नहीं हो पायेंगे । पिछले कुछ सालों में गांधीजी का मतलब भारत और भारत का मतलब गांधीजी हो गया था । उनके द्वारा मानो भारत साँस ले रहा था । उनकी वाणी भारत के जनसाधारण की वाणी थी । उनका देशप्रेम, सेवाभाव, त्याग सब अपने आप में अनूठा था । वे भारत की आजादी, आबादी और अभ्युत्थान के लिये पैदा हुए असाधारण दिव्य आत्मा थे और अपने साथ अन्य कई आत्माओं को पृथ्वीपट पर लाये थे, जिनका जीवनध्येय भारत को आजादी दिलाना था । जैसे ही वो कार्य संपन्न हुआ, वो चल बसे ।
गांधीजी की मौत हमें सोचने पर मजबूर करती गयी । एसे महापुरुष को गोली मारने का खयाल किसको और कैसे आया होगा । जिस ढंग से उनकी मौत हुई, वो पूरे देश के लिये कलंक थी । इससे यह सिद्ध होता है की हमारी आपत्तिओं का अंत नहीं हुआ है । हम शायद एसे लोकोत्तर महापुरुष के लायक नहीं है । गांधीजीने अपना जीवन राष्ट्र के नाम कर दिया, जीवन की प्रत्येक क्षण देश की सेवा और सुखाकारी के लिये कुरबान कर दी, पर लोग उन्हें ठीक तरह से पहचान नहीं पाये । जब तक एसे लोग जिन्दा है, उनके घातक विचार एवं कार्यों की सजा हमें भुगतनी पडेगी । देश में गांधीजी का सम्मान करनेवाले बहुत सारे लोग है, वे चाहते हैं की अपना जीवन उनके जैसा बनायें । वे मानते है की भगवान कृष्ण, बुद्ध तथा इशु की तरह गांधीजी पृथ्वीपट पर अपना संदेश देने के लिये आये थे । मगर गांधीजी को देखना अब इन आँखों को नसीब नहीं होगा ।
रातभर मैं शोक में डूबा रहा । सोचता रहा की अब देश का क्या होगा ? हालाकि गांधीजी के आदर्शों पर चलनेवाले कई नेता मौजूद है, मगर उनका राहबर और प्रेरणादाता चला गया । शायद इसके पीछे इश्वर की कोई योजना होगी । शायद वो चाहता होगा की भारत समृद्ध और समुन्नत बनें, समस्त संसार को सुखशांति का संदेश सुनाये । महर्षि दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद तथा रामतीर्थ जैसे महापुरुषों ने इस कल्याणकार्य का प्रारंभ कर दिया । गांधीजी उनकी परंपरा के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे । उनके देहावसान बाद उनका कार्य जारी रहेगा । बडे भारी मन से मैंने परमात्मा से प्रार्थना की । मैं जल्दी से जल्दी अपने साधनात्मक लक्ष्य को पा सकूँ और देश तथा दुनिया के काम आ सकूँ ।
दूसरे दिन सुबह, चंपकभाई के प्रयासों से समुह प्रार्थना का आयोजन किया गया । महात्मा गांधी जैसे महापुरुष को मरणोपरांत प्रार्थना की कोई आवश्यकता नहीं थी । हमारी प्रार्थना से उन्हें कोई लाभ पहूँचनेवाला नहीं था मगर हमारे लिये प्रार्थना जरूरी थी । लोग अक्सर भूल जाते हैं की प्रार्थना से मृतात्मा को शांति मिले या ना मिले, हमें अवश्य लाभ होता है । सच्ची श्रद्धांजलि ये होती है की हम उनके नक्शेकदम पर चले और हमारा जीवन उज्जवल करे । गांधीजी तो अपना जीवनध्येय हासिल करके शांति से चले गये । अब हमें उनसे प्रेरणा लेकर हमारा जीवन कृतार्थ करना है । उनकी मौत के बारे में सोचकर अपनी जिन्दगी को नये सिरे से सँवारना है ।
गांधीजी का जीवन ईश्वर को समर्पित था । विविध कार्यभार के बीच उनका मन रामनाम में लगा रहता था । तभी तो जीवन के अंतिम क्षणों में वो 'हे राम' कह सके । उनकी निष्काम कर्मपरायणता तथा परमात्मपरता हमारे लिये सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगी ।
जब तक दुनिया कायम है, गांधीजी अमर रहेंगे । उनका जीवन वर्तमान तथा भावि पीढियों को मार्गदर्शन देता रहेगा यह निस्संदेह है ।