नहान जानेका विचार अपूर्ण रहा इसलिये हमने धरमपुर जानेका फैंसला किया । अब सीमला में अधिक रुकने की कोई वजह नहीं थी । हमने नेपालीबाबा को प्रस्थान के बारे में बताया तो उन्होंने कहा की वो स्टेशन पर अलविदा कहने के लिये आयेंगे ।
दोपहर को हमने सामान तैयार कर दिया । फिर यकायक मुझे विचार आया की नेपालीबाबा का स्थान तो देखा ही नहीं ! जोशीजी को मेरा खयाल पसंद आया इसलिये हम नेपालीबाबा का निवासस्थान देखने के लिये निकले । रास्ते में बारिश की वजह से हम थोडे भीग गये । जैसे हम उनके स्थान की करीब पहूँचे, हमने देखा तो नेपालीबाबा खुद मार्ग पर हमारा इन्तजार कर रहे थे ।
हमने कहा, 'अरे, आप बारिश में यहाँ क्यूँ खडे हैं ?'
नेपालीबाबा बोले, 'मैं आपके स्वागत के लिये खडा हूँ । आप इतनी दूरी तय करके मुझे मिलने आये तो मैं यहाँ तक न आउँ ? आज दोपहर को दो बजे के करीब आप दोनों एक स्त्री के साथ यहाँ आने की योजना बना रहे थे वो मैंने सुना था । इसलिये मुझे मालूम था की आप आज सीमला नहीं जा रहे मगर यहाँ आ रहे हैं ।'
उनकी बात सत्य थी । दोपहर को हमारे साथ जोशीजी के रिश्तेदार की स्त्री चर्चा में साथ थी । नेपालीबाबा की अदभुत शक्ति का यह ओर एक प्रमाण था ।
नेपालीबाबा का कमरा जीर्ण और साधारण था । वहाँ से आसपास की पहाडीयाँ दिखाई पडती थी । एसी जगह पर एसे सिद्ध महापुरुष रहते होंगे एसी कल्पना करना मुश्किल था । हम आंगन में बैठे । कुछ देर में नेपाली लडकी, जिसका जीक्र नेपालीबाबा ने किया था, हमारे लिये हुक्का लेकर आयी । जोशीजी ने उसका स्वीकार किया । मैंने केवल पानी लिया । नेपालीबाबा की पडोश में पांच-सात मुसलमान के घर थे । उनमें से एक बिमार था । नेपालीबाबा उसे अपने मकान में ले आये थे और इलाज कर रहे थे । बाबा की सेवा में रहनेवाली नेपाली बेन तेजस्वी और सुंदर मुखाकृतिवाली थी । उसे देखते ही उसकी आत्मिक प्रगति का प्रमाण मिलता था ।
मैंने बाबा के साधना करने की जगह में बैठने की ईच्छा व्यक्त की । नेपाली बेन ने फौरन वहाँ मेरे लिये आसन बिछाया । मैं वहाँ थोडी देर बैठा । बैठते ही मुझे भावावेश जैसा हुआ । मेरी आँख में से आँसू चलने लगे । फिर गहेरी शांति और आनंद का अनुभव हुआ । मुझे यकीन हुआ की सिद्धपुरुषों के साधनास्थल में एक प्रकार की दिव्य और अलौकिक शक्ति होती है ।
मैंने जोशीजी को मार्ग में बताया की वो नेपालीबाबा को प्रश्न पूछें । जिसके मुताबिक जोशीजी ने पूछा: 'बाबा, अपने अनुभव के आधार पर बताईये की समाधि के लिये सबसे सुगम मार्ग कौन सा है ?'
नेपालीबाबा फौरन बोल पडे: 'सुरत-शब्द-योग ।'
नेपालीबाबा के कहने का मतलब था की साधक के भीतर जो नाद सुनाई पडता है, उसमें मन की वृत्ति का केन्द्रीकरण करने से समाधि का अनुभव आसानी से होता है । सुरत का अर्थ मन की वृत्ति होता है । नेपालीबाबा का इस स्पष्टीकरण सुनकर मुझे हर्ष हुआ, क्योंकि यह कथन मेरे उस दौर के साधनात्मक अनुभवों से मेल खाता था ।
मैंने बाबा से पूछा: 'आप औषधियों के बारे में बहुत कुछ जानते हैं । क्या समाधि करानेवाली कोई औषधि के बारे में आपको पता है ?'
नेपाली बहन पास ही थी । मेरी बात सुनकर वो बोली: 'लामा गुरु ने आपकी ओर अंगुलिनिर्देश करते हुए कहा था की यह एक महान आत्मा है । आप उनका ठीक तरह से आदर सत्कार करना और यह औषधि तथा फोटो देना ।' फिर वो नेपालीबाबा के कहने पर समाधि करानेवाली औषधि लेने गई ।
लामा गुरु की आज्ञा के मुताबिक नेपालीबाबा ने अपनी एक तसवीर मुझे दी । जब नेपाली बहन औषधि लेकर आयी तो बाबाने मुझे उसके प्रयोग के बारे में आवश्यक सूचनाएँ दी । साथ में ये भी कहा की जोशीजी को यह औषधि मत देना, क्योंकि लामा गुरु ने सिर्फ आपको देने की आज्ञा की है ।
यहाँ मैं एक बात बताना चाहता हूँ की दहेरादून आकर मैंने औषधि का प्रयोग किया । मैंने जोशीजी को भी औषधि दी मगर उनको कुछ नहीं हुआ । हाँ, मैं रात दस बजे औषधि लेकर ध्यान में बैठा तो कुछ ही देर में मेरा देहभान चला गया । जब मैं जाग्रत हुआ तो सुबह नौ बज चुके थे और जोशीजी मेरे सामने खडे थे । जोशीजी ने कहा, 'मैं दो-तीन दफा आपके पास आया था । आपके मुखमंडल पर अलौकिक तेज था ।'
शाम को नेपालीबाबा हमे छोडने आये । बीदा होते हुए उन्होंने कहा, 'आपका सर्वत्र जयजयकार होगा, दिग्विजय होगा ।'
सूर्यास्त हो चुका था । आकाश गुलाबी रंगो से भर चुका था । उनकी और अंगुलिनिर्देश करते हुए मन-ही-मन कुछ बोलें । शायद वो मेरे उज्जवल भावि का दिशासूचन कर रहे थे !
यह हमारी आखरी मुलाकात थी । उस रात हम सीमला से निकले । तबसे लेकर आज तक हमारी फिर भेंट नहीं हुई । मगर वो महान सिद्धपुरुष के लिये दिल में प्यार और मधुर स्मृतियाँ अब भी बरकरार है । दो साल बाद मेरा उनके नाम लिखा हुआ खत 'नेपालीबाबा नहीं रहे' एसा 'डेड लेटर ओफिस' का सिक्का लगाकर वापिस आया था । इस बात की यथार्थता के बारे मैं केवल अनुमान कर सकता हूँ । मगर वो जहाँ भी है, जिस रूप में हैं, उनको मेरा प्रेमपूर्वक प्रणाम है ! वे भारत और विश्व की विरल विभूति है । उनका स्थान हमेशा बना रहेगा, कभी नहीं मिटेगा ।
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सीमला से हम धरमपुर आये, मगर वहाँ ज्यादा नहीं रुके । एक दिन के बाद हम दहेरादून के लिये चल पडें । जोशीजीने दहेरादून को अपना घर बनाया था । एसे शहर में रहने के बावजूद वो साधनापरायण जीवन व्यतीत करते थे । जो लोग गृहस्थाश्रम में रहकर आत्मोन्नति के पंथ पर जाना चाहते है उनको जोशीजी के जीवन से बहुत प्रेरणा मिल सकती है । जोशीजी का हृदय करुणा से भरा था, वे किसी ओर का दुःख नहीं देख सकते थे । संतो की सेवा करना उनका स्वभाव था । उनकी धर्मपत्नी भी समजदार थी ।
जोशीजी चाहते थे की मैं दहेरादून रहूँ मगर मेरा दिल देवप्रयाग जाने के लिये लालायित था । फिर भी मुझे कुछ दिन वहाँ रुकना पडा क्योंकि मेरे दाहिने पैर के साथल में फोडा हुआ । उन दिनों, जोशीजी ने मेरी प्यार से सेवा की थी ।
देवप्रयाग आकर मैंने मौनव्रत धारण किया और समाधि के अनुभव के लिये अपने प्रयास तेज कर दिये । माँ जगदंबा के दर्शन के लिये निरंतर प्रार्थना करने लगा । चार-पांच मास देवप्रयाग रहने के बाद सर्दीयों की शुरुआत होने पर मैंने गुजरात के लिये प्रस्थान किया ।